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________________ भाव पक्षीय विश्लेषण ११५. सबसे पहने मेरू पर्वत की आधारभूत रत्नप्रभा पृथ्वी है। इस पृथ्वी का पूर्व पश्चिम और उत्तर-दक्षिण दिशा में लोक के अन्त पर्यन्त विस्तार है । इस ही प्रकार शेष छह पृथ्वियों का भी पूर्व पश्चिम और उत्तर दक्षिण दिशाओं में लोक के प्रान्त पर्यन्त विस्तार है । मोटाई का प्रमाण सबका भिन्न-भिन्न है । पान के उदय से यह जीव नरक गति में उपजता है, जहां कि नाना प्रकार के भयानक तीव्र दुखों को भोगता है । पहली बार पृथ्वी तथा पांचवी के तृतीयांश नरकों में उष्णता की तीव्र वेदना है तथा नीचे के नरकों में शीत की तीव्र वेदना है । अन्य स्वकृत-परकृत नाना प्रकार के दुख हैं जिनका वर्णन प्रसंभव है । इसलिए जो महाशप इन नरकों के घोर दुःखों से भयभीत हुए हों, वे जुआ, चोरी, मद्य, मांस, वेश्या, पर स्त्री तथा शिकार यादिक महापापों को दूर ही से छोड़ देगें । मध्यलोक मध्यलोक का वर्णन कविवर बुधजन ने काफी विस्तार के साथ किया है । उन्होंने मध्यलोक पंचासिका शीर्षक द्वारा ५० पद्यों में मध्यलोक का वर्णन किया है। प्रारंभ करते हुए कवि लिखते हैं- मैं सर्वज्ञ को मस्तक झुकाकर तथा ग्राम (जिनवाणी) का सार समझकर मध्यलोक पंचासिका का वर्णन बहुत सोच विचार कर करता हूँ । भूमि में जड़ है तथा निन्यानवे हजार योजन भूमि के ऊपर ऊंचाई है और चालीस योजन की चूलिका है। यह सुमेरू पर्वत गोलाकार भूमि पर दश हजार योजन चौड़ा है तथा ऊपर एक हजार योजन चौड़ा है। सुमेरू पर्वत के चारों तरफ भूमि पर भद्र शाल वन है। वह भद्रशाल वन पूर्व और पश्चिम दिशा में बावीस २ हजार योजन और उत्तर दक्षिण दिशा में ढाई ठाई सौ योजन चौड़ा है। पृथ्वी से पांच सौ योजन ऊंचा चलकर सुमेरू के चारों तरफ द्वितीय कटनी पर पांच सौ योजन चौड़ा सोमनस वन है | सौमनस से छत्तीस हजार योजन ऊंचा चलकर सुमेरू के चारों तरफ तीसरी कटनी पर चार सौ चोरानवे योजन चौड़ा पाण्डुक वन है । मेरू की चारों विदिशाओं में चार गजदन्त पर्वत है। दक्षिण और उत्तर भद्रसाल तथा निषध और नील पर्वत के बीच में देवरू श्रीर उत्तर कुरु है । मेरू की पूर्व दिशा में पूर्व विदेह और पश्चिम दिशा में पश्चिम विदेह है । जम्बूदीप से की खंड और पुष्करार्थं द्वीप में है । मनुष्य लोक के भीतर और तीस भोग भूमि हैं । दूनी रचना धात पन्द्रह कर्मभूमि सरवन कूं सिरदायकं, लखिजिभ भागम सरर | मध्यलोक पंचासिका, परतू विविध विचार || युधजन: तत्वार्थ बोध, मद्य संख्या ४४, पृ०४५ लश्कर । १.
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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