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भाव पक्षीय विश्लेषण
१६ शारदाष्टक १७ नंदीश्वर जय माला १८ जिनवाणी जब माला १६ दर्शनाष्टक
कविवर बुधजन ने अपनी प्रसिद्ध रचना 'तत्वार्थ बोध' में विभिन्न विषयों पर विस्तृत प्रकाश डाला है । उन्होने चिप्स की एकाग्रता के लिये ध्यान को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। उनके द्वारा प्रतिपादित ध्यान के प्रकार निम्न चार्ट द्वारा समझे जा सकते हैं।
ध्यान
पातं ध्यान
रौद्र ध्यान
धर्म ध्यान
शुक्ल ध्यान
१ इष्ट वियोग १ हिसानंद १ प्राज्ञाविचय १ पृथक्त्व वितर्क २ प्रनिष्ट संयोग २ मृपानन्द २ उपायविचम २ एकत्व वितर्क ३ पीटा चिंतन ३ स्तेयानंद ३ विपाकविचय ३ सूक्ष्मक्रिया प्रति
पाती ४ निदानबंध ४ परिग्रहानंद ४ संस्थानविचय ४ व्युपरत क्रिया
निवर्ती ध्यान की परिभाषा कविवर बुधजन के शब्दों में :--
चित्त को एकाग्र करना प्रर्थात् प्रात्म गुणों की अोर लगाना तथा अन्य संसार सम्बन्धी संपूर्ण विकल्पों को हटाना या उनसे दूर रहना, उन्हें चित्त में न माने देना इसी फा नाम ध्यान है । वह ध्यान चार प्रकार का है। प्रात, रोद्र, धर्म और शुक्ल । इनमें से प्रथम दो प्रकार का ध्यान (मातं और रौद्र ध्यान) अशुभ ध्यान हैं। दूसरे दो ध्यान
१. चित्त एकापरोकना, विकल्प मान निबार ।
ध्यान कहत है सासका, भेव चार परकार ॥१२॥ पारस न कुष्यान वो, अशुभ कुति वातार ।
धर्म शुक्ल शुभ ध्यान जो सुरशिव सुख दातार ॥१३॥ क-विषजनः तरवार्थयोष पृ० २५८ ध्यानरचना प्ररूपण, श्लो. १२-१३, पृ०स० २५८