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________________ १०२ कविवर बुधजन : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सम्यम्मान और सम्यक् चारित्र रूप बोधि की दुर्लभता का विचार करना बोधि दुर्लभ भावना है। धर्म के स्वरूप का विचार कर पात्मा को धर्ममय बनाने का विचार करना धर्म भावना है। कविवर बुधजन का कहना है कि इन बारह भावनाओं का चितवन करने से भावों में वैराग्य की जागति होती है । इस विश्व के गवं देह के वास्तविक स्वरूप का विचार करत-करते भात्मा विषय-भोगों से विरक्त हो, विलक्षण प्रकाश युक्त दिव्यजीवन की ओर झुकता है । जन कवि मंगतराय कितने उद्बोधक शब्दों में मानव भाकृति धारी इस लोक और उसके द्रव्यों का विचार करता हुना प्रात्मोन्मुख होने की प्रेरणा करता है। प्रत्येक संसारी जीव अपने-अपने भावों के अनसार किस प्रकार और कौन-कौन से कर्मों का बंध करता है । बुधजन कवि के अनुसार उक्त सारणी में दृष्टव्य है । गुरणस्थान अपेक्षा प्रकृतियों के बंध १. मिथ्यात्व तीर्थकर, प्राहारफ शरीर, प्राहारक अंगोपांग का बंध छूट जाता है। १२०-६-११७ २.सासादन मिथ्यात्व, हुंडक संस्थान, नपुसक बैद, नरकगति नरकगत्यानुपूर्व, नरफायु, अर्सप्राप्तामृपारिका-संहनन, एकेन्द्रिय, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, स्थावर, आताप, सूक्ष्म, अपर्याप्त साधारण का बंध सुट जाता है। ११७-१६-१०१ ३. मित्र अनंतानुबंधी जन्म २५ प्रकृतियां और मनुष्यायु देवायु का बंघ नहीं होता है। १.१-२७-७४ ४. भविरत सम्यग्दृष्टि तीर्थंकर, मनुष्यायु, देवायु का बंध होता ७३-३-७७ ५. देश विरति अप्रत्याख्यान-४, मनुष्यगति, मनुष्य गत्यानुपूर्वी मनुष्यायु, देवायु, औदारिक १. जैन ० राजकुमार : मध्यात्मपावली, पृ० ५५, भा. शामपीठ प्रकाशन १९६४ २. लोक अलोक भाकाश माहि थिर, निराधार बाना । पुरुष रूप करकटी भये, षट् द्रष्यनिसों मानो ।। बंग कवि मंगतराय : बारह भावना (लोक भाषमर), निनवाणी संग्रह भारतीय ज्ञानपीठ काशी प्रकाशन ।
SR No.090253
Book TitleKavivar Budhjan Vyaktitva Evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Shastri
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year1986
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth, Biography, & History
File Size4 MB
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