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________________ कविवर वृचराज एवं उनके समकालीन कवि कृति में पपभ्रंश शब्दों का खुलकर प्रयोग किया । ऐसे शब्दों के कुछ उदाहरण निम्न प्रकार हैं काव्य को भाषा पाण रिसहो तिस्थयक अम्मर मरण धम्मु दु तिजंत्र गब्वु गोदमु हिन्दी शब्द ज्ञान ऋषभ तीर्थंकर जन्म मरण धर्म दुब्द तियंन्त्र गर्व गौतम ↑ कवि ने कुछ शब्दों के प्रागे 'ति' लगाकर उनका क्रिया पद शब्दों में प्रयोग क्रिया है । इस दृष्टि में हाकन्ति, संति, कुषंति, कुरलति, गायंति, वजेति (३४) जैसे शब्दों का प्रयोग उल्लेखनीय है । यहाँ पर यह कहना पर्याप्त होगा कि कवि ने प्रारम्भ में अपनी कृतियों की भाषा को अपने पूर्ववर्ती अपभ्रंश कवियों की भाषा के अनुकूल बनाने का प्रयास किया लेकिन इसमें उसने धीरे-धीरे परिवर्तन भी किया जिसे 'सन्तोष जयतिलकु' एवं 'वेतन पुद्गल धमाल' में देखा जा सकता है। 'चेतन पुदगल धमाल' कवि की सबसे अधिक परिष्कृत भाषा मे निवद्ध कृति है । जिसे कोई भी पाठक सरलता से समझ सकता है । संवादात्मक कृति के रूप में कवि ने बहुत ही सहज एवं बोलचाल के शब्दों में गूढ़ से गूढ़ बातों को रखने का प्रयास किया है। इसलिए उसमें कोमल, सरल एव सुबोध रूप में विषय का प्रतिपादन हो सका है। कवि की तीन प्रमुख कृतियों के अतिरिक्त 'नेमिनाथ बसन्धु', 'टंडारणा गीत ' जैसे अन्य गीतों की भाषा भी राजस्थानी का ही एक रूप है। इन गीतों की भाषा पूर्वापेक्षा अधिक सरल है तथा शब्दों का सहज रूप में प्रयोग किया गया है । इसका एक उदाहरण निम्न प्रकार है राज दुबार झल्लरी, अहि निसि सबद सुगावें । सुभ असुभ दिनु जो घट, ड न सो फिर भावइ । धाव न सो फिरि धाइ जो दिनु, भाउ इणि परि खीज्जइ । मोरु सम्मा व संजम खिणु विलंब न कीजिए ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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