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________________ कविवर बूचराज इस जीव को फिर चतुर्गति में भ्रमण नहीं करना पड़े इसलिए परिहन्त भगवान की भक्ति में मन लगाना चाहिए । ऐसे उपदेशात्मक पदों में मनुष्य का प्रथवा इस जीव का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है। कवि को बड़ी चिन्सा है कि यह जीवात्मा पता नहीं किस वेला से जगत पर लुभा रहा है। जिसको भी मात्मा में लगन लग जाती है तो उसे कष्टो का भान नहीं होता। संयम जीवन के लिए प्रावश्यक है। जो व्यक्ति संयम रूपी नाव पर नहीं चढ़ता है वह अनन्त संसार में डुलता रहता है । इसलिए एक पब में "संजमि प्रोहरिण ना व भए अनन्त संसारि" के रूप में प्रस्तुत किया है। सभी गीतों में इस जीद को विषय रूपी कलापों से सावधान किया है तथा उसे मोक्ष मार्ग पर चलने की प्रेरणा दी है। क्योंकि स्वयं की गो उसी राग का थे: ब: गोमा रात्रि विन प्रात्म साधना में ही लगे रहते थे । इस प्रकार कवि ने अपनी कृतियों में पूर्णत: माध्यामिक विषय का प्रतिपादन किया है जिसको पढ़कर प्रत्येक पाठक दुराई से बचने का प्रयत्न कर सकता है तथा अपने मात्मा विकास की ओर प्रागे बढ़ सकता है। भाषा कविवर बूवराज की कृतियों की भाषा के सम्बन्ध में इतना ही लिखना पर्याप्त होगा कि युवराज जन कवि थे। इसलिए जनता की भाषा में ही उन्हें काम लिखना अच्छा लगता था। उनके काव्यों की भाषा एक सी नहीं रही । प्रारम्भ में सम्होंने मयणझ लिखा जो अपभ्रंश से प्रभावित कृति है। इसकी भाषा को हम डिगल राजस्थानी के निकट पाते हैं। जिसमें प्रत्येक शम्ब का बड़े जोश के साथ प्रयोग किया गया है जिसका उद्देश्य अपने वर्णन में जीवन डालना मात्र माना जा सकता है । मैं मयजुज्म की भाषा को राजस्थानी डिगल का ही एक रूप कहना पाहूँगा। जिसमें जननी को जणणी (२), मध्य को मम्झि (७१, पुत्र को पुत्त (१०) के रूप में शब्दों का प्रयोग हुआ है। यही नहीं राजस्थानी शब्दों का जैसे पूछा लागा (२२), भाग्या (५६), बीडउ (३५) का भी प्रयोग कवि को रुचिकर लगा है । कवि उस समय सम्भवत. ढू लाट प्रदेश के किसी नगर में थे इसलिए उसमें उर्दू मान्द जो उस समय बोलचाल की भाषा के शब्द बन गये थे, प्रा गये हैं । ऐसे शब्दों में चूतडि (३०), खवरि (३१), फौज (६५) जैसे शब्द उल्लेखनीय हैं। इस समय अपनश का जन सामान्य पर सामान्य प्रभाव था। तथा प्रपन श की कृतियों का पठन पाठन खूब चलता था । इसलिए खूपराज ने भी अपनी
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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