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________________ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि १० गीत (सुणिय पधानु मेरे जीय वे को सुभ घ्यानि प्रावहि) पह गीत राग धनाक्षरी में लिखा हुप्रा है। गीत में ४ पद हैं तथा प्रत्येक पद में ६ पंक्तियाँ हैं। प्रस्तुत गौत में इस बात पर आश्चर्य प्रकट किया गया है कि यह मनुष्य सच्चे धर्म का पालन नहीं करता है इसलिए उसे व्यर्थ में ही गतियों में फिरना पड़ता है । मोहिनी कर्म के उदय से यह सत्तर कोडाकोडी सागर तक भ्रमता रहता है फिर भी बन्धन से नहीं छूटता। संपत्ति, स्वजन, सुत एवं मनुष्य देह सब कर्म संयोग से मिल जाते हैं । मनुष्य जीवन रूपी रत्न मिलने पर भी वह उसे यों ही खो देता है तथा मधु बिन्दु प्राप्ति की भाशा में ही पड़ा रहता है । निग्रंथ महन्त देव ने जो कहा है वही सच है। उसी से जन्म मरण के बन्धन से छूट सकता है । ११. गीत (पट मेरी का चोलणा लालो, लोग मोती का हार वे लालो) राग धनाश्री में लिखा हुमा यह दूसरा गीत है जिसमें ४ पद हैं तथा पहिले वाले गीत के समान ही प्रत्येक पद में ६ पंक्तियाँ हैं। प्रस्तुत गीत में हस्तिनापुर क्षेत्र के शान्तिनाथ स्वामी के पूजा के महात्म्य का वर्णन किया गया है। अभिषेक व पूजा की पूरी विधि दी हुई है । शान्तिनाय की पूजा पीत वस्त्र पहनकर तथा अपने प्राप का शृगार करके करना चाहिए । कवि ने उन सभी पुष्पों के नाम गिनःये हैं जिन्हें भगवान के चरणों में समर्पित करना चाहिए । ऐसे पुष्पों में रायचंपा, केवडा, मावा, जुही, कुद, मचकुद प्रादि के नाम गिनाये हैं। कवि ने लिखा है कि जब मालिन इन पुष्पों की माला गूध कर लाती है तो मन से बड़ी प्रसन्नता होती है। उस माला को भगवान के चरणों में समर्पित कर फिर पांच कलशों से भगवान शान्तिनाथ का अभिषेक किया जाना चहिए । पन्त में कवि ने भगवान शान्तिनाथ की स्तुति भी की है मुकत्ति दाता नयणि दीठा, रोगु सोग निकंदणो । अवतारु प्रचला देवि कुक्षिाह, सह विससेरण नंदरणो । अगदीस तू सुरण भण वूचा जनम दुखु दालिद हरो । सिरि संति जिणवर देउ तूठा पानु गढि हथिनापुरी । १२, गीत-रंग हो रंग हो रंगु फरि जिणवरु ध्याइये । प्रस्तुत गीत राग गोडी में निबद्ध है जिसके ४ अन्तरे हैं। कवि ने इस गीत में मानव में जिनदेव के रंग में रंगे जाने का उपदेश दिया है । क्योंकि उन्होंने पाठ को पर तथा पंचेन्द्रियों के विषयों पर विजय प्राप्त कर ली है इसलिए झुठ एवं लालच
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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