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________________ ३२ कविवर बूधराज बारहमासा, नेमिनाथ बसंत जैसी रचनाओं द्वारा विरह रस का वर्णन किया और अपने पाठकों को वैराग्य रस की घोर प्रेरित किया । किन्तु इसके अतिरिक्त छोटेगीतों द्वारा मानव के हृदय में जिनेन्द्र भक्ति के भाव भरे, जगत की नि सारता बतलायी और अपने कर्तव्यों की प्रोर संफेत किया। लेकिन ये अधिकांश गीत पंजाबी शैली से प्रभावित हैं। जिससे स्पष्ट है कि कवि ने ये सब गीत हितार की ओर विहार करने के प्रभात लिखे या देशा पास किया जा सकता है। सभी गीत यद्यपि भिन्न-भिन्न रागों में लिखे हुए हैं लेकिन मूलतः सबका उपदेशात्मक विषय है । मानव को जगत की बुराइयों से दूर हटा कर सन्मार्ग की मोर ले जाना तथा संसार का स्वरूप उपस्थित करना ही इन गीतों का मुख्य उद्देश्य है। कभी-कभी स्वयं को भी अपने मन की चपलता के बारे में जान प्राप्त हो जाता है और इसके लिए वह चिन्ता करने लगता है । संयम रूपी रथ में नहीं चढ़ने की उसको सबसे अधिक निराशा होती है। लेकिन उसका क्या किया जावे । अब तो संयम पालन एवं सम्यकत्व साधना उसके लिए एकमात्र मार्ग बचता है और उसी पर जाने से वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है । अब तक कवि के ११ गीत एवं पद मिल चुके हैं। इन गीतों के अतिरिक्त और भी गीत मिल सकते हैं इसमे इन्कार नहीं किया जा सकता। सभी गीत गुटकों में उपलब्ध हुए हैं। इसलिए गुटकों के पाठों की विशेष छानबीन की विशेष पावश्यककता है। यहा सभी गीतों का सारांश दिया जा रहा है। ६. गीत (ए सखी मेरा मनु चपलु दसै दिसे घ्यावं वेहा) प्रस्तुत गीत में उस महिला की प्रात्म कथा है जिसे अपने चंचल मन से बड़ी भारी शिकायत है । वह चंचल मन लोभ रस में डूबा हुआ है और उसे शुभ ध्यान का तनिक भी ख्याल नहीं है । यह पांचों इन्द्रियों के संग फंसा रहता है । इस जीव ने नरकों के भारी दुःख सहे हैं। मिथ्यात्व के चक्कर में फंस कर उसने अपना सम्पूर्ण जन्म ही गंवा दिया है । उसका मन भवसागर रूपी भूल मुलया में पड़कर सब कुछ मुला बंटा है, यही नहीं उसे दुःख होने लगता है कि वह अपनी आत्मा को छोड़कर दूसरी प्रात्मा के वश में हो गया। इसलिए अब उसने वीतराग प्रभु को शरण ली है जो जन्म मरण के चक्कर से मुक्त है तथा रत्नत्रय से युक्त है। गीत में ४ पद हैं और प्रत्येक पद ६--६ पंक्तियों का है गीत की भाषा राजस्थानी है। जिस पर पंजाबी बोली का प्रभाव है । गीत राग वढहंस में निबद्ध है। इसकी प्रति दि जैन मन्दिर नेमिनाथ (नागदी) बेदी के शास्त्र मण्हार के एक गुटके में उपलब्ध है।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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