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________________ कविवर बूचराज इसी प्रकार जब वैशाख का महिना माता है तो नयनों को केवल नेमि की बाट जोहने का काम ही रहता है जब नेमि नहीं आने हैं तो वे वर्षा ऋतु के समान वे बरसने लगते हैं | २४ उनके वियोग में उसका वज्र का हृदय नहीं फटता है इसलिए ए सखि उनके बिना वैसाख महिना अत्यधिक दारुरण दुख को देने वाला बन जाता है | 2 नेमि राजुल को लेकर कितने ही जैन कवियों ने बाराह मासा नित्र किये हैं। विरका एवं षद् ऋतुओं का वर्णन करने के लिए नेमि राजुल का जीवन जैन साहित्य में सबसे अधिक आकर्षण की सामग्री है । कविवर बुबराज के प्रस्तुत वास्तुमा का हिन्दी बारहमासा साहित्य में उल्लेखनीय स्थान है | कवि ने इसमें राजुल के मनोगत भावों को इस प्रकार प्रस्तुत किया है कि वे पाठको को प्रभावित किये बिना नहीं रहते । कवि के प्रत्येक शब्द में विरह व्यथा छिपी हुई है और वह परिणय की आशा लगाये विरही नव योवना के विरह का सजीव चित्र उपस्थित करता है । राजुल को प्रत्येक महिने में बिरह वेदना सताती है तथा उस वेदना को वह नैमि के बिना सहन करने में अपने श्रापको श्रसमर्थ पाती है । कवि को राजुल की विरह वेदना को सशक्त शब्दों में प्रस्तुत करने में पूर्ण सफलता मिली है । ४. चेतन पुद्गल घमाल १. कविवर बुचराज की यह महत्वपूर्ण कृति है । पूरी कृति में १३६ प हैं । ताडा पालैवा । इनु कातेगे कार्तिगि आगमु को afs मंत्र मंडवि राजुल मग्गो नेहो लैवे । मग्गो निहाल देखि राजुल नया वह विसि बावए । सर रसहि सारस रशिभिनी दुसहु विरहु जगवए । कि वर तुम विगु पेम लुखिय तरुणि जोवरिश बालाए । बाहुबहु नेमि जिए चडिज कासिगु कियत्र आगमु पालए ||४|| ए यह आइछा अब वुसहु सस्तो बसालो से । जवहसेवा इसि जाइ सनेहडा आलोय | प्रायो सनेहा जाइ बाइस प्रन्तु नोह न भावए । बुइ नया पावस करहि निसि दिनु चितु भरि भरि श्रावए । फुट्ट न जं वल्लम वियोनिहि हिया दुखि वज्जिहि धड्या । बस व विसुराहु सखिए दुसष्ट अति वारगु चयः ||१०||
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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