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________________ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि २१ इधर अब लोभ को संतोष की बात मालुम हुई तो बह बहुत क्रोषित हमा और उसने संतोष को सदा के लिए समाप्त करने की घोषणा कर दी। उसने उम समय भूठ को अपना प्रधान बनाया । मोर एवं द्रोह, फल एवं कलेश, पाय एवं संताप सभी को उसने एकषित किया। मिथ्यात्व, कुष्यसन, कुशील, कुमति, राम एवं ष सभी वहाँ मा गये और इन सब को अपने साथ देखकर लोभ प्रसत्र हो गया। उसने कपट रूपी नगाड़ों को बजाया तथा विषय रूपी घोड़ों पर बैठकर संतोष पर प्राक्रमण कर दिया । मंतोष ने जब लोभ रूपी शत्र का प्राक्रमण सुना तो उसे प्रसन्नता हुई । उसका सेनापति प्रात्मा बहीं आ गया मोर उसने अपनी सेना को भी यहीं बुला लिया । वहाँ १८००० अंगरक्षकों के साथ शील सुभट पाया। साथ में ही सभ्यक् दर्शन, ज्ञान एवं पारिन, वैराग्य, तप, करुणा, पंच महावत, क्षमा एवं संयम मावि सभी यौद्धा वहाँ पा गये । वह अपने सैनिकों को लेकर लोभ से जा टकराया । जिन शासन की जय जयकार होने लगी तो मिथ्यात्व भागने लगा। जय जयकार की महाधुनि को सुनकर ही कितने ही शात्रु पक्ष के योद्धा लड़खड़ा गये । शील का चोला पहनकर रलत्रय के हाथी पर सवार होकर विवेक की तलवार लेकर सम्यकरव रूपी छत्र पहनकर पद्म एवं शुक्ल लेण्या के जिस पर चंबर ढ़ल रहे थे, ऐसा संतोष राजा रण में लोभ से जा भिडा । उसने अपने दल के अन्दर अध्यात्म का संचार किया । जो शुरवीरों के हृदयों में जाकर बैठ गया । एक प्रोर लोभ छलकपट से अपनी शक्ति को तोखने लगा तथा दूसरी भोर संतोष ने अपने सुभदों में सरलता एवं निमलता के भाव मरे । इस पर दोनों ओर से चतुरंगिनी सेना एकत्रित हो गयी। भेरी बजने लगी। तब लोभ ने अपने सैनिकों को संतोष के सैनिकों पर प्राक्रमण करने के लिए ललकारा । संतोष ने लोभ से कहा कि ऐसा लगता है कि उसके सिर पर काल चढ़ गया है। उसके सब साथियों को मूढ़ता सता रही है । जहाँ सोभ है वहां रात दिन यह प्राणी दु:ख सहता रहता है। लेकिन जहाँ संतोष है यहाँ उसकी इन्द्र एवं नरेन्द्र सेवा करते हैं । लोभ ने जमत में प्रभी तक सभी को सताया है तथा जगत में सभी को जीत रखा है, लेकिन प्राज संतोष का पौरुष भी देखे । यह सुनकर लोभ ने भूठ को प्रागे भेजा । लेकिन संतोष ने सत्य को भेजा मोर उसने उसका सिर काट लिया। इसके पश्चात् मान को बीड़ा दिया गया और वह जब रणभूमि में उतरा तो मार्दव ने उसका सामना किया मोर उसको बलहीन कर दिया। लेकिन फिर भी वह हटा नहीं तो महावतों ने एक साथ उस पर प्राक्रमण कर दिया पौर अरण भर में ही उसे परास्त कर दिया । अब मोह अपने प्रचण्ड हाथी पर बैठ कर आगे बढ़ा । मोह को देखकर विधेक उठा और उसे रणभूमि में से भागने
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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