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________________ कविवर बूचराज इससे पता चलता है कि कगि : पति शम्शे रोग का पोर नहीं त्याग सका सौर उसने अपने काव्य को लोकप्रिय बनाने के लिए प्रचलित शब्दों का प्रयोग करके उनको भी प्रश्नाने का प्रयास किया। भयराजुज्झ की राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में कितनी ही प्रतियाँ संग्रहीत है । इनमें निम्न उल्लेखनीय है । १. भट्टारकीय शास्त्र भण्डार अजमेर गुटका सं० २३२ पश्च सं० १५८ लिपि सवत् १६१६ २. दि. जैन मन्दिर दीवानजी कामां , १ -- - ३. वि० जैन मन्दिर लश्कर, जयपुर , १६ - ४. दि जैन मन्दिर बड़ा तेरहपंथी जयपुर, २४२ - लिपि सं० १७०५ ५. दि. जैन मन्दिर बड़ा तेरहपंथी, जयपुर, २७६ - १७०७ ६. महावीर भवन, जयपुर ७. दि. जैन मन्दिर नागवी, बूदी १.४ १४२ - २. संतोष जयतिलक बूचराज की यह दूसरी रचना है जिसमें उसने रमना समाप्ति का उल्लेख किया है। संतोष जयतिलक का रचना काल संवत् १५६१ भाद्रपद शुक्ला ५ है अर्थात् मयण जुन्झ के ठीक २ वर्ष पश्चात् कवि ने प्रस्तुत कृति को समाप्त किया था 14 दो वर्ष के मध्य में कवि केवल एकमात्र रचना लिख सके अथवा अन्य लघु रचनाओं को भी स्थान दिया इसके सम्बन्ध में निश्चित जानकारी नहीं मिलती है। लेकिन कवि राजस्थान से पजाब चले गये थे यह प्रवश्य सत्य है। प्रस्तुत कृति को उन्होंने हिसार में छन्दोबद्ध की थी । जैसा कि स्वयं कवि ने उस्लेख किया है संतोषह जय तिला जंपिङ हिसार नयर मंझ में । जे सुणहि भविय इक्क मनि ते पावहि वंछिय सुक्ख ।। संतोष जय तिनकु भी एक रूपक काव्य है जिसमें लोभ पर संतोष की विजय बतलायी १. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डार को ग्रन्थ सूची पंचम भाग पृष्ठ ६८४, १०८८, ११०६ । बही, द्वितीय भाग। ३. वही, प्रथम भाग 1 ४. संवति पनरइ इमारण भरवि सिय पक्खि पंचमी विवसे । सुक्कवारि स्वाति वृषे जैज तह जागि भरणामेण ॥१२२।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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