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________________ कविवर बूचराज १२ एवं ब्रह्मवारी शिष्यों का केन्द्र थी। इसी संवत् में राजवातिक जैसे ग्रन्थ की प्रति करवाकर ब्रह्म लाल को दी गयी थी। संवत् १५७५ से १५८५ तक जितनी प्रशस्तियाँ हमारे संग्रह में उपलब्ध होती है उन सभी के ग्रन्थ किसी न किसी भट्टारक अथवा उनके शिष्य, ब्रह्मचारी या साधु को भेंट किये गये थे। उस समय बुचराज की भट्टारक प्रभावन्द्र के प्रिय शिष्यों में गिनती थी। इनकी सम्भवतः वह साधु बनने की प्रारम्भिक अवस्था थी। भट्टारक संघ में संस्कृत एवं प्राकृत के ग्रन्थों का अध्ययन चलता था । इसीलिए भट्टारक प्रभाचन्द्र अपने शिष्यों के पठनार्थ ग्रन्थों की प्रतियों भेंट स्वरूप प्राप्त करते रहते थे । चाटसू (चम्पावती) से इनका विहार किधर हुआ इसका स्पष्ट निर्देश तो नहीं किया जा सकता लेकिन संवत् १५८० में ये राजस्थान के किसी नगर में थे । वहीं रहते हुए इन्होंने अपनी प्रथम कृति 'मयणजुज्भ' को समाप्त की थी। यह अपभ्रंश प्रभावित कृति है । संवत् १५६१ में वे हिसार पहुँच गये और वहाँ हिन्दी में इन्होंने 'संतोष जयतिलकु' की रचना समाप्त की । उस दिन भादवा सुदी पंचमी श्री । पर्यंषण पर्व का प्रथम दिन था । वृचराज ने लोकांत शल पर्व में स्वाध्याय के लिए समाज को समर्पित की। संवतोल्लेख वाली कवि की यह दूसरी व अन्तिम कृति है । इस कृति के पश्चात् कवि की जितनी भी शेष कृतियाँ प्राप्त हुई है उनमें किसी में संवत् दिया हुआ नहीं है । हस्तिनापुर गमन कवि ने अपने एक गीत में हस्तिनापुर के मन्दिर एवं शान्तिनाथ स्वामी के मन्दिर का वर्णन किया है तथा वहाँ पर होने वाले कथा पाठ का उल्लेख किया है 1 इससे मालूम पड़ता है कि कवि हस्तिनापुर दर्शनार्थं गये थे । १. भट्टारक श्री प्रभाचन्द्रदेवास्तवाम्नाये चंपावती नामनगरे महाराव श्री रामचन्द्रराज्ये खंडेलवालान्वये साह गोत्रे संघभार धुरंधर सा० काथिल भार्याकालदे तस्य पुत्र जिनपूजापुरम्बर सा० गुजर भार्या प्रथम लाखी कुतीया सरो "एतान् इवं शास्त्रं कौमुदी लिखाप्य कर्मक्षय निमित्तं ब्रह्म चाय दत्तं । ++** ( प्रशस्ति संग्रह - सम्पादक डा० फासलीवाल पृष्ठ, ६३ ) देखिये प्रशस्ति संग्रह --- सम्पादक डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल, पृ० ५४ ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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