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________________ ११ कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि ब्रह्म वृचराज भट्टारक भुवनकीर्ति के शिष्य थे। जो सपने समय के सम्माननीय भट्टारक थे । वे सफलकीति जैसे भट्टारक के पश्चात् भट्टारक पद पर विराजमान हुए थे। बुचराज मे मुवनकीर्ति गीत में भट्टारक रत्नकीति का भी उल्लेख किया है जिससे जान पड़ता है कि कवि को अपने अन्तिम समय में कभी-कभी भट्टारक रत्नीति के पास रहने का सौभाग्य भी प्राप्त हुभा था । इसीलिए उन्होंने भुवनकीति गीत में 'रणि श्री कोति सिहं कपिना सुर" रत्नक्रीति के प्रति अपनी भक्ति प्रदर्शित की है। लेकिन धनका पर्याप्त समय पंजाब के नगरों अपने जन्म स्थान, माता-पिता, शिक्षा-दीक्षा. इनकी पत्रिकांश रचनाएँ कवि राजस्थानी विद्वान थे। में व्यतीत हुआ था। इन्होंने स्वयं आयु प्रादि के बारे में कुछ भी परिचय नहीं दिया। राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में ही उपलब्ध हुई है। इसलिए इन्हें राजस्थानी विद्रात्र कहा जा सकता है। इन्होंने अपनी दो रचनाओं में रचना संवत् का उल्लेख किया है । जो संवत् १५५६ एवं संवत् १५९१ है । संवत् १५८६ में रवित मयरणजुज्झ में इन्होंने न किसी स्थान विशेष का उल्लेख किया है और न किसी व्यक्ति विशेष का परिचय दिया। इसी तरह संवत् १५६१ में रचित 'संतोष जय तिलकु' में केवल हिसार नगर में काव्य रचना समाप्त करने का उल्लेख किया है। अतः वंश एवं माता-पिता का परिचय प्रस्तुत करना कठिन है । दूधराज का प्रथम नामोल्लेख संवत् १५८२ की एक प्रशस्ति में मिलता है । यह प्रशस्ति 'सम्यकत्व कौमुदी' के लिपि कर्त्ता द्वारा लिखी हुई है। उसमें भट्टारक प्रभाचन्द्र देव के प्रास्ताय का, चम्पावती (चाकसू, जयपुर) नगर का, वहाँ के शासक महाराजा रामचन्द्र का उल्लेख किया गया है । चम्पावती के श्रावक खण्डेलवाल ऋशीय साह गोत्र वाले साह काफिल एवं उनके परिवार के सदस्यों ने सम्यक्त्व कौमुदी की प्रति लिखवाकर ब्रह्म बूचराज को प्रदान की थी। संवत् १५५२ में कवि चम्पावती में थे । वहां मूल संघ के और ये भी उन्हीं के संघ में रहते थे। 2 इससे ज्ञात होता है कि भट्टारकों का जोर था चम्पावती उस समय भट्टारक प्रभाचन्द्र १. श्री भुवनकोति चरण प्रणमोह सखी प्राज बखावहो । भुवनकीर्ति गीत २. संवत् १५८२ वर्षे फाल्गुन सुदी १४ शुभविने श्री मूलसंधे बलात्कार सरस्वतीच्छे थाम्नाये श्री कुरवकुम्वाचार्यान्वये भट्टारक श्री पद्मनवि-देवा स्तत्पट्टे भट्टारक भी शुभ सन्द्र देवास्तरपट्टे भट्टारक श्री जिनचखवेवास्तत्पट्टे क्रमशः
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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