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________________ २६४ कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि नेमिराजमति वेलि सरसय सामिरिण पय जुयल, नमी जोड़ि कर दोइ । नेमकुमार राजमती जती कहूंउ, सुरगहु सब कोई ||१|| " आइ मास बसंत सि जन मन भयो प्रनंदु सब्वाइ वन कीला बल्या, मिलि द्वारिका नदि । मिलि द्वारिका नरिदो, वसुषो बलिभनु गोविदो । समदविजे दर्स दसारा, सिवदेस्यों ने मिकुषारा 1 सतिभामा खपिणि राही, जयवंती सरिस माही | ले सोलह सहम भगवाणी, चारबी घाली पटरानी । वाल्या दल वल रूप निधानो, पठदवर जुभानु सुभानो परधान परोहित मंत्री, मिलि चल्या सयल भह खित्री । हयगय रय जाण जाणा, मिल पाया जाम राणा ॥ मुखि कहै किता इक जोड़े, मिलि चलिया छप्पन कोडे । हल रज पसरी चौपासा नहु सू सूर अगासा । fe सुगड सह देसी, वन मिति मति मारे केसी । सिरि छत्र चमर दुइ पासा, सोहइ सिरि पडी पभाषा । बाना बाजे बहु भंते, बंदियण विरुद पभते । मनि धानंदु पत्रिकुं बहंता, हरि बिंदु वनिद्दि संपता ॥२३॥ रोहडा गीत नाद रस पेषणा, परिमल सुख संजोग : तर खाया वल्लीभवरा, फिरि फिरि मुंज्या भोग || ३ | जहि जहि केलि करंतु, वनिहीडी नेमिकुवारु । तहि तिथ वाही क्याममहि, लामी किराँति लार १४३ लागी फिरहित लारा, भरि जोवन रूप प्रमारा । कालीय जिणु दीठो चाहें, हलि व खिस्योरिन साहूँ । कवि रूप रथपरसि घाली, दखि एक कवि कहै कुंवर मा जाहे, तुझु रूपु किलो थिया । आजि उठ चाली ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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