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कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि
नेमिराजमति वेलि
सरसय सामिरिण पय जुयल, नमी जोड़ि कर दोइ । नेमकुमार राजमती जती कहूंउ, सुरगहु सब कोई ||१||
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आइ मास बसंत सि जन मन भयो प्रनंदु सब्वाइ वन कीला बल्या, मिलि द्वारिका नदि । मिलि द्वारिका नरिदो, वसुषो बलिभनु गोविदो । समदविजे दर्स दसारा, सिवदेस्यों ने मिकुषारा 1 सतिभामा खपिणि राही, जयवंती सरिस माही | ले सोलह सहम भगवाणी, चारबी घाली पटरानी ।
वाल्या दल वल रूप निधानो, पठदवर जुभानु सुभानो परधान परोहित मंत्री, मिलि चल्या सयल भह खित्री । हयगय रय जाण जाणा, मिल पाया जाम राणा ॥ मुखि कहै किता इक जोड़े, मिलि चलिया छप्पन कोडे । हल रज पसरी चौपासा नहु सू सूर अगासा । fe सुगड सह देसी, वन मिति मति मारे केसी । सिरि छत्र चमर दुइ पासा, सोहइ सिरि पडी पभाषा । बाना बाजे बहु भंते, बंदियण विरुद पभते । मनि धानंदु पत्रिकुं बहंता, हरि बिंदु वनिद्दि संपता ॥२३॥
रोहडा
गीत नाद रस पेषणा, परिमल सुख संजोग : तर खाया वल्लीभवरा, फिरि फिरि मुंज्या भोग || ३ |
जहि जहि केलि करंतु, वनिहीडी नेमिकुवारु । तहि तिथ वाही क्याममहि, लामी किराँति लार १४३
लागी फिरहित लारा, भरि जोवन रूप प्रमारा । कालीय जिणु दीठो चाहें, हलि व खिस्योरिन साहूँ । कवि रूप रथपरसि घाली, दखि एक कवि कहै कुंवर मा जाहे, तुझु रूपु किलो थिया ।
आजि उठ चाली ।