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________________ २५४ कविवर बूच राज एवं उनके समकालीन कवि की जय बोली जाने लगी। जो लोग नगर छोड़कर चले गये थे वे प्रधिक दुःखी हुए और जो नगर में ही रहे वे शान्तिपूर्वक रहे । एम जपिय करिवि थुम पूज, मल्लिदास पंडिय पमुह । सई हया सामी उचायउ, सुच्छ मूरति पनि तिलु । हूको जागि मागिरि सवारः इणि निदि ममित पालिहु । पूरि विहरी भराति जयवंत जगि पास तुह, जेव करी सूख संगति ॥२४॥ तास पर ते जिके पर अश्वनी भग्गा दिन रह्या । हवा मुम्बी ते घरा वास, जे भगा भंति करि । दुख पाया प्रस् रड्या ससि, अवरइ परत्या वह इसा । प्रभु पुरिवा समथु, प्रजजन जिस पतिसाइ मनु, मो नरु निगुरण मिरथु ॥२५॥ पाश्र्वनाथ 'सकुन सप्ताबीसी' पं० मल्लियास के आग्रह से रची गयी थी ।। मल्लिदारा ने ठक्कुरसी से पाश्यनाथ के मन्दिर में ही इस प्रकार के स्तवन लिखने की प्रार्थना की थी। कवि ने अपनी सर्वप्रथम अल्पज्ञता प्रकट की क्योंकि कहां भगवान पार्श्वनाथ के अनन्त गुण और कहां कवि का अल्पज्ञान 1 फिर भी कवि अपने मित्र के प्राग्रह को नहीं टाल सके और उन्होंने सत्तावीसी की रचना कर डाली। और अन्त में भी मल्लिदोस से सत्तावीसी पढ़ने के लिए प्राग्रह किया है। प्रस्तुत ससावीसी की पाण्डुलिपि वि० जैन मन्दिर पं० लूणकरण जी पांड्या के प्रशास्त्र भण्डार के एक गुटके में संग्रहीत है। लेकिन मुटके में एक पत्र कम होने से ५ से १४ वें पद्य तक नहीं है । सत्तावीसी की एक प्रति अजमेर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में भी संग्रहीत है । ७. जैन चउवीसी जैन वीसी का उल्लेख पं० परमानन्द जी शास्त्री ने अपने लेख में किया है। यह स्तुति परक कृति है जिसमें २४ तीर्थकरों का स्तवन है । राजस्थान के शास्त्र भण्डारों में जैन चवीसी को कोई पाण्डुलिपि नहीं मिलती । .- ----- १. एक विक्सह पास जिए मेह मल्लिदास पंडिस कह । कुरसीह मणि कवि गुणम्गल गाहा गोय कवित कह । तह क्रियमय निसुरणी समकाल । इव श्रीपास जिव गुण कहि न किंतु हु भन्म । बहि कीया थे पाविए मन वंछित सुख सम्य ।।२।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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