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________________ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि तव पग परहि पुरंदर देव, पर चक्के स फ्याहि सेव । कहि कल्यान मित्र गुण गेह, सूरि सुदत्त वेगि तपु देहू ।।४४७१। सहि अवसरि प्रभु तनी षवासु, कुक्या जाह जह रणवासु । किम सिंगारु करहु वरणारि, योवन गयो भयो तप धारि ||४४८|| किम कसि कंचुकि पहिरहु अंग, बहुरि नाह मिलै रति रंग । क्रिम तण पहिरह दक्षिण पीर, किम मंबहु प्राभरण सरीर ।।४४६।। कुकुम रेह करहु क्रिम वानि, केम कसनि कटि बंधहू तानि । अरु किम बलहु समोरति देह, फिरिया नाहु भाव सगेत ।। ४५०|| अंजहू नयण केम सुहिणाल, वास सुगंध कुसुम की माल । अरु किम नेवर चलहु बजाइ, करि कटाणु किम मिल बहू भाई ।।४५१।। किम रचि बनी बंधुहु फूल, सेज रमहू किम कोमस तूल । किम कर वीन मावहु नारि, अरु किम बिसहु वयन पसारि ।।४५२॥ अरु किम चंदन चरपऊ अंगु, कंत कियो सजम सिरि संग । स कहुत जाइ बरो रहु णाऊ, सोतलु करहुँ बिरह तन दाऊ ।।४५३।। जो कल प्याऊ कर करतारु, तो पव कीव मिले भरतारु । चरण रतनो वरानु सुनि काण, सब रानी लागी प्रफुलाण ॥४५४।। अंतेवर बहू कीनो सोरु, जनु निसिव तकण पेध्यो चोरु । मधुकर मिले पयसा सुष वास, बिरजति तिनहि चली पिय पास ||४५५|| जिहि वन सबण पास, सुपियरु, तथु मागत देख्यो भरतार । बहुत भाति समुझायो नाहु, परि तप ऊपर तर्ज ण गाहु ।।४५६।। जौ प्रतिअसहै वह पयारि, सके होनु किम परतु टारि । तोरपो मोह कर्म को हेतु, हम फुणि सुण्यो पिता तपु लेतु ।।४५७।। रथ चद्धि वीरु बहिरण बन गए, किंकर बहुत साथ करि लए । दरसनु पेषि मुनिस र तनी, तब हम भी सुमरी प्रापणी ॥४५८।। कुसुमावली हमारी माछ, ताकी छोरि परे मुरझाइ। सोचि पवण जल चेयर लही, अपने मुह प्रग्नी मव कही ।।४५६।। वस्तबन्ध इस जि जसहरु चंद मै प्रम्हे पुणु गेह रहे । वितहि मरिबिद्रोविसिहि साण पत्तइ ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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