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________________ यशोधर चौपई २२६ काहि बोर केम सिम मापु, मासु प्रात कटि जाइए पापु । जिम परघातु पापु सिम जाणि, बचनु अडोलु हमारी मानि ||४३४।। जब यहु बचनु मुनीश्वर कहो, नरवे वेति चमकि चित रह्यो । सुनि कल्याण मिन गुण षामि, मम महू वात लाई किम जाणि ।।४३५१ वणिवक भी राय णिसुलेह, फितिक बात जो जानी एह । मई होइनी परतति बहे, मुनिया तिहू लोक की कह ॥४३॥ माता पिता पितर तो तन, जो खूभ, सो मुनि वरु भने । राजा तनो गर्व मलि गयो. बूझे चयनु भातुरी भयौ ॥४३७।। राजा द्वारा पूर्व भव जानने की इच्छा राज जसोधु पिता ससिमति, कहि मुनिवर तिनकी भवगती । जसहरू अभिय महादे सरिख, भए केम तिम संसो भानि ॥४३॥ मुनि द्वारा कथन--- सुनि मुनि बयण नारि मन पूरु, भास सुयण सरोरुह सूरु । च्यौरी को भई जिम वात, जैसे फिरे भवंतर सात ।।४३६॥ चन्नमती मरु तेरौ ताउ, कियो अचेपण कुक्कुट घाउ । ही तासु पाप के लए, अमकमारु प्रभमति भए ॥४०॥ सिरस कुसुम सम कोमल देह, ते दोऊ पलहि तुब गेह । भष्यो प्रमिषु सेयौ परषारू, अरु विसु द मारधी भरुतारू ।।४४१।। कोढिनि मई महा दुषमरी, पषम नरक जाह अवसरी । सो तू अमिय महादे जाणि, तेरी माय पाप की षाणि ।।४४२।। तो सो भवण भवति गति कही, जिम जिनि करी तेम तिरिए नही । यह संसार जीत्र करि भरयो, कर्म कुलाल कमठ वस परचौ ।।४४३।। भान गढ़ गई मुनि भानि, नर वै जलद पटल अमु जारिए । पुरिस सीह सुनि जस मै राह, बिनु जिन धर्महि सुषु र लहाइ ॥४४४।। भव व्यौरी निसुन्यो वरवीर, हा हा भनि घर हस्यो सरीर । चेतु लागि मुनिवर पग परयो, मन बिलषाइ हिगी गह परयो ।।४४५|| असू टूटहि कंपइ देह. जनु भर भादो दरसे मेहु । औ गहू पापुण घास पाइ, तब लगि तपुदै तिह वाराह ।।४४६।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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