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यशोधर चौपई
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जेसा वयवम भासहि वीरा, जासु पसाद तरहि भव तीरा । ए प्रतिपालि धर्म की रासि, प्रागम कहो प्रिनेसुर भासि ॥३८॥ फुणि भटु भणे जु तुम मुरिण दयो, सो मन बचन काय मै लयो । परि मेरै कुल मारग एक, मुनिवर निसुनि धर्म की टेक ॥३२॥ पिता अजायौ जो पर तातु, पायो चल्यो वंस बीय पातु । जसमै राय तनो कुटवारु, मार मि चोरु जारु वट पारू ॥३८३।। भास मि देव वयत परिवाहि, पालमि सयलू हिंसा छाडि। निपुनि धयनु मुनिवर हसि परयो, जान्यो प्रजहु मूढमति भरचौ ॥३८४।। निसुनि मुळ जिभ सि चिनु, लवर प गोगनरगिल मे । जिम मुह होए नयण पर एक, जिम बहु सून एक विनु अंक ।।३८६॥ धम्म पहिस धर्म की आदि, ता बिनु मूढ धम्म सव धादि । अरु तू कहहि मूठ निरमंस, आइ घली हमार बंस ॥३८६।। ताको उत्तर पभनो भाषि, पल कोट जो सातो साषि । कोइ बैदु मिल ल मूरी, परि सो कटु करै सम दूरी ।।३६७।। कहि कहि मूढ प्रापु गुण साश, पूर्व भलो किस हिये व्याधी । तंब चूल कीणि सुरहि वाता, जिम ए फिरे भयंतर साता ॥३८८।। सहे महा दुष नरक समाना, तिम तु सहि हे मूढ भयाना । तब पित अति वास मा भनी, कहि कहि सुगुरु कपा इण तनौ ।।३८६।। जय वर भने प्रमोघ रस वाणि, सुनि वर वीर कया थिरकाणि । जसहरु एक अचेयण धात, भवर्गात फिग्यौ भवंतर साप्त ।।१६॥
श्लोक धीमह उचनिनामनगरे सुरोजसोधो तृपः । पत्नी चन्द्रमती सुतो जसघर:, नारी चरित्रे मृता । संपत्तो सिहि स्वान जावह फणी जुग्मोपि अंभंवरः । छेली छागु स्ववीर्य छेल महिषो एवं पुनः कुक्कुटः ॥३६१।। इनके कहे भंवसर वीरा, तंव चूल पंजर तो तीरा । अव नर जनम् तनो अवतारु, दोऊ लहहि काटि दुहू भारु ।३३६२।। तलवर मेति प्रापु भतु लयो, जनु रवि किरण पेषि तुम गयो । निसुनी कपा मुनीसुर भनी, कुक्कुट भव सुपरी मापनी ॥३६॥