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________________ कविवर बूच राज एवं उनके समकालीन कवि गगि दिरावर दोन भानु, सुहह दी तसवरू तरहान । कोटवार मन चिंत्यो सहा- इह निलज्जु बन भायौ कहा ॥३६७० पेषि गउ मन कोषु करेइ, याकी रिस मेरे सिर देइ । मुनिवरु वातानु लेमित चाटि, यावन से कमि निरघाटि ।।३६८" हिंभ भरमौ आयो मुनि , जगास की सरकार । मुनिबरु ति जग सरोग्ह सूर, धम्मं बुद्धि दीनी गुरण पूर ।।३६६।। मुनि मुनि बचन सुहडु भनि कहै, कहिये धम्मु कवनु को लहो । धर्म धनुषु सिव सूचे वाण, यहू भासिउदीचर परवाण ।। ३७०॥ मुनिवरु भने नि सुनि कुटवार, पभम धर्म तन, विनहार । कहिय मुकति भमर पद थान. सूस्खु प्रनतु को कहण समानु ।।६७१।। कहियै धम्मु अहिंसा भादि, जा दिनु हिडिउ प्रादि धनादि । मुनिवर बचन सुह दह सि परयों, मुनिकर कादि घच महू परयौ ॥३७२॥ कबनु जीव को दुस्खु सहाइ, मुख देह माटिहि मिलि जाइ । पवन हि पक्न मिलै मन जाणि, क्रिम मुनि भासहि झुट बधारिग ।।३७३।। कवन काज दुषु सहहि सरीरा शाह अंगतन पहिराह चीरा। वहनिए जीव लेइ अवतारू, विनु कण कुटहि काइ पियारु ।।३७४।। फुणि रिसि वोल्यो भणिसु सुरणेहा, भिन्न जीच करि जागहि देहा । सातै तमु करि काटहि पापु, जान्यो देव जीव गुन मापु ॥३७५।। जो परि पबन गयो मिलि यौन, दुष सुष मूत सहो तो कौन । भलो बुरी तो कीजई काइ, तलवरही गाव कहि किम वाइ ॥३७६॥ जो गुण मुनि वरु भासी पेषि, सो गुरगु तलवा मेटा दोषि । भणी सुभटु वरसण अंगु, मुनिवर भासि करै तिष भंगु ।। ३७७।। तल वर मुटु भरणे सच जोरि, सो संसो मुनि घाल सौरि । जितो वादु मुनि तलवर कोणु. सेतो किमि भासमि बुधि होनु ॥३७८।। तमवर तनो रह्यो मनु माणि, पादु नुपरो सु दिदु मुणि आणि । उपमा बहुत केमकरि भनौ, किम घटाइ मुस को लीपनो १३७६।। तलवर भरणे निसुनि गुरदेव, दै प्राइ सुकरभि किम सेव । भास स वनु सुभट करि एह, माउ भूल गुण दिछु करि लेह ।।३८०॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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