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________________ २२२ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि पाजि पिता तनौ दिनु एड, तासु नाम बहु भोजन देहु । झूठी वहतु अमिष की रासि, सोर सुधा बहू छेरे पासि ॥३३६।। निरमलु दोकु अजोनी जानु, लहै सुरगु सुप आज तास । तिनके कहत अजाघर मारिण, दिलु करि मंदिर बाध्यौ तानि ॥३४०।। प्रमिय महादेवी को गेह, वोकु क्षुधा तृस व्याप्यो देह । ताल वेस पयासी धनी, तहि अजाभव सुमरी यापनी ।।३४१।। देख्यो कुटमु दासि भरु घासु, मारिदत्त हुषु कहिये कासु । सवु मंदिरु पेप्यो पक्षपोइ, तब पछिताने कछू न होइ ।।३४२।। हो तिग्जंतु पुकारी कासु, कोइ देइ नपान्यो घासु । रूपिनि णाहनि श्र निएं घरी, अमीय महादे दीठित परी ॥३४३!! तहि अवसरि राबर को हासि, पापिनि रानी तनी षबासि । जोवन तहण कनक सममाप्त, कहति चली पापु समहु वात ।।३४४।। दासि एक पभने तनु मेरि, करि कटाषु मुह नाक सकोरि। रावर विगधि कहा रमि रही, अवर भने तुम बात न लही ।।३४५।। मरमु न जान हि कष्ट्य गवारी, राजा स्याव जलयो मारि । जसहर चन्द्रमती दिनु आजु, होइ बहुत भोजन को सात्रु ।।३४६।। सरमौ मासु गधि साची एहा, अमिय महादेवी के गेहा । मवर दासी वोली अरगाई, कहमि वात परि कहण न जाइ ||३४७।। निसि दिन सेवा जाकी कीज, सषी तासु किमि वरी कहीज । पादै तुम्ह देही मारि, सुनैत सामि निडारै मारि ॥३५॥ तऊ कहमि जो कहण न बोगु, प्रमिय महादे वा यो रोगु । चितु ६ भोजण मारी णाहु, फुनि कूकरी रयो करि गाह । १३४६।। घाइ भमिछु डाइनि अवतरि, पापिनि कुष्ट व्याधि सरि परी। दुष्ट कर्म सो मारी चूरि, ताकी विगघि रही भरि पूरि ।।३५०।। दामी तनी वयनु सुनि कान, मै घरतन पेष्यो तहि थान । तब बैठी देषी सोनारि, कोढिणे बिधना करी बिचारि ॥३१॥ पायो बेगि मापनो कियो, सो बयो तिसो नुनि लयो । मो गृषु भयो नारि अवलोई, जिमि निधन धनु पाए होइ ।।३५२।। मारिक्त निसुनिहि धरि भाष, काटिउ एकु प्रझाको पाउ । तीनि पाइसी बपुरा रह्यो, छुटै नही कर्म दिढ़ गयौ ॥३५३||
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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