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यशोधर चौप
चंचल डोल विलोल बिसाल कुच कंचुकी वनी कसि अंग, कनि मेला बंधी तानि, जनकु
ऋण वरण ससिहर मुष जोति, पेषत मुनि रति पति तर होलि । कोमल जनक पुष्प की माल || ३२४|१ फाटे तर कि भ्रमत बहू मंग | सुगडी विधाता आणि ॥३२३|| बंदन नागिनि घारही धुनि सुनि मुलहि हंस ।।३२६ ॥ धगनित जाने कला विताना अवसर करि जलाइ न्हान 1 कोला करे सविनुम्यौ मिली, विषय सुसुयार सो गिली ।।३२७||
बहुत कुसुम ले बैनी गुद्दी, जनु साल पषावज बीना बंस, नेवर
हाहा वादु नगर मौ भयो, सुसुमान नाचनि गिलि गयो । रिपसुनि राज प्रायौ नदि सीर, जावि जोग दुह भर्गो सरीर ॥३२८॥ जीवर वोलि पलायो जारु, पक सूसि मेलि मुहगारु । ला पकरि बाहिरी सुमि मारी लात ला मुह घुसि ||३२|
र कवतु महादुष पाणि, दुष दिषराये नरक समानि । सहिए सोजि सहावे दई, तिस पुरि सो मरि मेरी भई ।। ३३०| दिवस जब गए बितीत ।
मह्यो गुष गारी घालि ।। ३३१||
मारिदत्त सुनि भय भयभीति क चीत्र न ल कम् पहू अलि, मोनू बाघ लात मुठी कनु हो, सुर गुर पहू दुष जाइ न गन्यो । रोड़ो भणितिनि दोनों ठोउ, जस में ताको कियो विगोज 11३३२००
पिता मरिवि जो उपज्यो भीनु, खोइ नाइ पिता के दीनु । सेदीवर भासहि वेव मूढण लहहि धम्मं को भेदु ||३३३|| जीवण जाइ कर्म वस परसो री तनै गर्भं प्रव्रत । जव तिरजंच वडेरी भयो, मातहि रखत ज हयो १२३३४ || आपु वा सो उपन्यौ प्रापु मारिदत्त को मेटै पाउ | पूरे दिवस भए जव पेट, एक दिवस प्रभु गर्यो घवेट ||३३५|| तिहि दिन राजहि भई न घास, वाण णी देगे घरजात | sat उदर वो करावालु, ताको काढिकिय प्रतिपालु ||३३६||
दिय बाह्यगा बर भन्यो पजनी जानु, बडौ भयो डोलें परुषातु 1 तिहि अवसर हु धरि भाऊ गरे जस में राउ ||३३७ ॥
हरिण रो सकर हरि ससे, मारे जीव बहूत कण वसे 1
विश्वर भरणहि शिसुरिए प्रभु साधु, जलहूर राजा तनौ सराछु ||३३=।
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