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यशोधर चौपई
पेष्यो वहिनि बदनु अवलोइ, जान्यो मत जिय हरपति होई । पया Hit प्रमाक्ष धार, किम नुवरि संकुचहि सरीर ।।७१॥ मुह भयंक क्रिम होहि मलोन, ए किम करहि हपारी हीन । जो जिम सासन प्रागम कहो, हम गुम पास सुदृडुकरि गयो ।।७२॥ जीव हि कोई सके न मारि, काया थिरु न होइ संसारि । ताते मुनिवर करहि न सोहु, काया ऊपरि छाउहि मोह ।।७३।। पूरै पावन राष कोई, तिम प्रनषूद मरणु न होइ । बहिनु लियह संसार प्रसार, एकुइ धर्म उतारण हारु ।।०४॥
दोहा छिज्जउ भिज्झर क, वहिनु लिएहु सरीरू। अप्पा भावहि निम्मलक, जे पावहि भवतीरु ॥७॥ कम्मह केरौ भाव मुनि, देहु अवेयनु दम्व । जीव सहावै भिन्नु इट्टा बहिलि बुझहि सन्न् ।।७६।। अप्पा जानहि नानमऊ अन्नु परायउ भाउ | सो छडैपिम् भोयहि, निसावाहि अप्प सहाउ ॥७॥ अट्टह कम्मह वाहि रक, सयलह दोसह चिस ।
सन नान परित्रमऊ, भावहि वहिरिण निरुत्त ।।७।। पप्प अप्पु मुनंत्त. जिज, सम्माइट्टि हवेइ । सम्माइट्ठी जीच फुडु लहू कम्मे मुच्चेइ ।१७६ ।। समिक्रत रयनु न दीजै छाडि, हम सौ सुगुर कह्यो जो टाडि । बार वार किम कहिए वीर, सुदरि होह प्रहोस शरोर ।। ८०॥ भायर वचनु निसुनि सुकुमारि, सारद मयंक बयन जनहारि । तुम जानी भयमीत शरीर, तो मो सिष दीनी वर वीर ।।८।। ताते वीर तुम्हारौ न्याय, तुम जाणो भामनि परजाल । जानमि मरणु पहूच्यो पानि, इरपमि नही धीर गुण खानि ।।८।। को काको संसार प्रसारु, हिडित जीव लेतु अवताह । सो कूलि को जा लईन चौर, सो दुषु कोजु न साहौ सरीर ।।३।। जे हम सात भवंतर फिरे, ते किम वीर बेगि श्रीसरे । जिनवर धम्म सुगुरु को कह्यो, दई दई करि सो हम ल ह्यो ।।४।।