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________________ ॥ ॐ नमः ॥ अत्र यशोधर चौपई लिखते ॥ मंगलाचरण यशोधर चौपई — जय जिनवरु विमलु श्रहंतु मुमहंतु सिव कंतबर | श्रमर एरायण रणिम्यर वंदिउ । उवसमिय फलूसरइ तिजय बंधु दधम्म दिउ ।। दोहा पण विवि पंच पमेदि गुरु श्ररकमि पुन पवित्त | शिसुणहु भब्य विचित्त कह जसह तनय चरित् ॥ १॥ फुनि परमि सामिरिण भारहि, जासु पसाद सुबुधि मइ लही 1 चंद्रवदणि मृस गर्याणि विसाल, बबलंवर प्रारुही मराल ||२|| अविरल विमल भास रस खापि वीणा दंड सुमंडिय पाणि । छह दरसनिमाणी बहुभाई, सरसे सामिणि हो हाई ॥३३॥ पणविधि भाव सम्मु गुरु सूरि, भासमि सुकह सुयण सुषु पुरि । गुर गूगुर चंदन तिल तेल, जल चंदन चरु पुष्करण एल ||४|| बेत्रपाल सुभु करहु दयाल | दिनु कारण प्रगटहि बहु भेद ||५ ॥ मुल रय दिनु विवहि पापु । बोलत बुरो पराई कहै ||६|| पुत्रमि पडिम जासु के भाल, लाजे दुरिजन ता कहि परछेद, जे पर खुपसुखु मारण हि आपु वगज्यो देनिहुराई है, श्लोक मुहपद्मजलाकारं वाचा सोतल संजुतं । हृदमं कर्त्तरि संयुक्त त्रिविधि दुज्जंनलक्षणं ॥ ७ ॥ न विना परवादेसु दुज्जंनो रमतोजस. । स्थान सर्व्वरसं भोक्त श्रमेषं वितृना नप्पते ॥८॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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