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________________ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि होरिल साहू करमसी पदम रामदास धर्मवास को जैन धर्म पर दृढ़ थद्वान था। वह शुद्ध धावक था तथा श्राव धर्म को जीवन में उतार लिया था । यद्यपि कवि गृहस्थ था। व्यापार करके पाजीविकोपार्जन करता या फिर भी उसका अधिक समय शास्त्रों के पठन-पाठन में व्यतीत होता था। जनधर्म सेवै नित्त, अरु वह लक्षण भाव पवित्त । नित निर्ग्रन्थ गुरनि मानउ, जिन प्रायम कह पठतु सुनहू । धर्मोपदेशश्रावकाचार में दैनिक जीवन में जन साधारण के मन में उतारने योग्य सिद्धान्त का प्रतिपादन किया गया है। अहिंसा, सत्य, प्रचौर्य, ब्रह्मचर्य, परिग्रह परिमाण के अतिरिक्त पाठ मद, दस धर्म, बारह भावना प्रौर सप्त व्यसन पर विस्तृत प्रकाश डाला है । कवि ने रचना में अपना कोई पांडित्य का प्रदर्शन नहीं करके साधारण भाषा में विषम का वर्णन किया है। शब्दों को तोड़ मरोड़ कर प्रयोग करने की प्रादत कवि में नहीं पायी जाती पोर न प्रालंकारिक भाषा मे पाठकों के चित को उलझन में डालने की चेष्टा की गयी है । पवम नाम तक भी पृत, कवियनु वेदकु कला संजूत । प्रवर वतुत गुन गहिर समान, महा सुमति प्रति चतुर सुभानु । अरु सो सज्जनता गुरण लीन, पर उपगारी विधना कीन । बर मिन्त्री सस मनधि कोइ, सलह ही वेस देस को लोइ । राम सिवी सन तनिय कलस, परम सील वे पस्य पवित्र । तासु उबर सुत उपनी वेबि, जिनु तिजि प्रवस्त धावहिं ते वि । 4 को धर्म विनुह सिरमनी, जिहिं पर राम अवांगनी । क्यालीन जिनवर पय धुनी, पर पायो पनु धूलि सम गिर्न ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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