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________________ गारवदास मेघमाल बरसें मसरार, बोष बधाए मंगलवार । नि सुनि विवसमन लावन खोरि, हीनु भाषिक सो लीजदु जोरि ।।५३६ ।। कवि ने अन्तिम पद्य में अपनी रचना के प्रचार प्रसार पर भी जोर दिया है तथा लिखा है कि जो भी उसकी प्रतिलिपि करेगा, करवायेगा तथा उसे भौरों को सुनावेगा उसे मपार सुख होगा। जन्म एवं एख सम्पत्ति मिलेगी | 1 भाषा भाषा की दृष्टि से यशोधर चौपई ब्रज भाषा की कृति है । गारवदास फफोदपुर (फफोंदू) के निवासी होने के कारण ब्रज प्रदेश से उनका अधिक सम्बन्ध था। साथ हो में वे ब्रज भाषा की मधुरता एवं कोमलता से भी परिचित थे । इसलिए अपनी रचना में सीधे सादे ब्रज शब्दों का प्रयोग किया हैं । नीचे दो उदाहरण दिये जा रहे हैं (१) (3) छन्व १६३ १. यशोधर चौपई अपने नाम के अनुसार चोपई प्रधान रचना है। कवि के समय पई छन्द ब्रज भाषा का लाडला छन्द था तथा जन साधारण भी चीपई छन्द की रचनाओं को ही अधिक पसन्द करता था। चौपई छन्द के प्रतिरिक्त कवि दोहा, दोहरा, वस्तुबन्ध एवं साटकु छन्द का भी प्रयोग किया है। चोपई छन्द के पश्चात् दोहा छन्द का सबसे अधिक प्रयोग हुआ है तथा दो वस्तुवन्ध एवं एक साटकु छन्द का भी प्रयोग करके कवि ने अपने छन्द ज्ञान का परिचय दिया है। इन छन्दों के अतिरिक्त कवि ने अपने पांडित्य प्रदर्शन के लिए संस्कृत के श्लोकों, प्राकृत गाथाओं" का भी यत्र तत्र प्रयोग किया है। इससे मालूम पड़ता है कि उस समय जन साधारण की संस्कृत के प्रति भी प्रभिरुचि थी । अलंकार २. सोहि कहा एते सौ परी जो हाँ कही सुन्दरि रावरी । विहिना लिख्यो न मेट्यो जाई, मन मरे सखी खरी पछिताहि ।।२२२|| एक नारि की नंदनु भयो, जसहर पास बघया गयो ।। १४५ ।। अलंकारों के प्रयोग को मोर ऋषि ने विशेष ध्यान नहीं दिया। सीधी-सादी परं गुणं लिलि बेई लिखाई, अरु सा गुण वरिण अनु कवि कहे, पुत्र ८६ वीं पद्म प्राकृत गाथा का है । मूरिख सो कहो सिचाइ । जनसु सुख सम्पति लहे ।। ५३७॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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