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________________ कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि करके न केवल अपनी भाषा विद्वता का परिचय दिया है लेकिन काम प्रध्ययन में थकने वाले पाठकों के लिए विराम तथा संस्कृत प्राकृत भाषा भाषी पाठकों के लिए नयी सामग्री उपस्थित की है। १६ वीं शताब्दि में यह भी एक काव्य रचना की पद्धति थी । भट्टारक ज्ञान भूषण (संवत् १५६०) ने भी 'मादीपदर फाग' में इसी शैली की रचना की है जो गारवदास के ही समकालीन कवि थे। यशोधर चरित की कथा का सार निम्न प्रकार है जम्बू द्वीप के भरतक्षेत्र में राजगृही नगरी थी। जो सुन्दरता तथा वन उपवन एवं महलों को दृष्टि से प्रसिद्ध थी। वहां के राजा का नाम मारिदत्त था। राजा मारिदत्त की युवावस्था थी इसलिए उसकी सुन्दरता देखती ही बनती थी। कला एवं संगीत का दीया । एक दिन म लगाया हा योगा उसके नगर में पाया । योगी के बड़ी बड़ी जटायें थी तथा वह मम के नशे में धुत्त हो रहा था। गौरवर्ण था। उसका नाम था भैरवानन्द । नगर में जब भैरवानन्द की तान्त्रिक एवं मान्त्रिक की दृष्टि से चारों ओर प्रशंसा होने लगी तो राजा ने भी उसे अपने महल में मिलने के लिए बुला लिया । मरवानन्द के महल में प्राने पर राजा ने उसका विनय पूर्वक सम्मान किया । राजा की भक्ति से वह बहुत प्रसन्न हुमा और कोई भी इष्ट वस्तु मांगने के लिए कहा। राजा ने अमर होने, एक छत्र राज्य चलाने सथा विमान में चलने की इच्छा प्रकट की। भैरवानन्द ने राजा की प्रार्थना को पूर्ण करने का आश्वासन दिया लेकिन उसने चंडमारि देवी के मन्दिर में बलिदान के लिए सभी प्रकार के जीवों को लाने तथा एक मानव युगल का भी बलिदान करने के लिए कहा । राजा तो विद्या के लिए अन्धा हो चुका था इसलिए उसने तत्काल अपने अनुसरों को भादेश पालने के लिए कहा । उसके सेवफ चारों भोर दौड़ गये तथा सभी प्रकार के पाशु पक्षियों को लाकर उपस्थित कर दिया। लेकिन मानव युगल खोजने पर भी नहीं मिला। कुछ ही समय पश्चात् वन में अनेक मुनियों के साथ सुदत्त मुनि का भागमन हुआ। वह वन खिल उठा | चारों ओर पुष्पों पर भ्रमर गुजार करने लगे एव कोयल कुहु कुहु करने लगी। मुनि ने उसी वन में ठहरने का विचार कर लिया । लेकिन वह वन मंधों का भी निवास स्थान था जहां वे केलि किया करते थे इसलिए सूधसाचार्य को वह वन समाधि के उपयुक्त नहीं लगा । वह अपने संघ सहित श्मशान भूमि पर चले गये। प्राचार्य ने एक युवा मुनि एवं साध्वी को नगर में माहार के लिए जाने को कहा । वे दोनों भाई बहिन थे। दोनों प्रत्यधिक कमनीय शरीर के थे तथा बत्तीस लक्षणों वाले थे। इतने में ही राजा के सेवकों की दृष्टि
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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