SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गारवदास १८१ ओ सभी सम्पन्न थी। प्रभवचन्द वहाँ का शासक था जो अतीव सुन्दर एवं पूर्ण चन्द्रमा के समान था । प्रजा में सुख एवं शान्ति व्याप्त धी तथा किसी को कोई भी दुःख नहीं था । उस नगरी में श्रावकों की घनी बस्ती पी। उसी में पद्मावती पुरवाल जाति थी जो जैन धर्मानुयायी थी। उसी में साह कान्हर थे और उनके सुपुत्र थे भारग साहु । वे यशस्वी श्रावक थे। उन्होंने चार गांव बसाये थे जिनके नाम थे जसरानो, गोय, असपुर भौर सौहारु । इनके घसाने से उसकी कीर्ति चारों मोर फैल गयी। सुलतान भी उसके कार्य से प्रसन्न था। उसकी धर्म पत्ति का नाम था देवलदे। उसके उदर से तीन सन्तान हुई जिनके नाम थे मेघु, जनकु एवं घेघु साह । थेषु साह बहुत ही स्वाध्यायी श्रावक थे। एक रार पत्रु साह ने संघ सहित पाईनाथ की यात्रा भी की थी पौर वापिस पाने पर उसने नगर में सबको भोजन कराया। कुछ समय पश्चात् उसको पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हुई । येषु सेठ दानशील भी थे और लोगों को भक्तिपूर्वक दान देते थे। बे रात्रि को जागरण करवाते थे जिससे धावकों में जिनेन्द्र भक्ति का प्रचार हो । १. मंग अमुन विच अंतर वेलि, सुख समूह सुरमानहि केलि । नयरो फैसई जनु मुरपुरी, निवसै धनी छसीसौ कुरौ ।।५२२॥ २. अभयचन्दु जह राः निसंकु, अनु कुलु पोडस कला मयंकु ।। परजा दुखी न वीस कोई, धर घर वधि वधाक होइ ।।५२३।। श्रावग बहुत बसहि जहि पाम, जनु आसिकी दीनो सियराम । पोमावे पुरवर सुखसोल, सुर समान घर मानहि कील ।।५२४।। सा कम्हर सुतु भारग सात मिनि धनुष रंनि लियो जसलाहु । जस रानो परनु सुभ ठोरु, गौछ महापुरु दूजो और ॥५२५।। मनगरु प्रेतपुरु पर सौहार, चारयो गाँध बसावन हात । जासु नाम पड़वा मुरिताम, राज काज जागो सुरिताण ॥५२६।। तासुमारि देवलदे नाम, जिम ससिहर रोहिनि रसिकाम । सोलु महातहि लीनो पोषि, नंदन तोनि यसरे कोवि ॥५२७।। मेघु मेघु परसूअस रासि, अनुकु सु र ससि सुक्र भकासि । जेठौ थेघ साह सुपहाणु, जासु नाम में ठयो पुरा ।।५२८|| ५. पुन्न हेतु जानै उपमारु, जिनवर अगिन करावण हा । बलत मोठि ले चाल्यो साथ, करी जात सिरी हारसनाथ 11५२६॥ खरचि बहुतु धनु रावन थान, घर पायो रियो भोपण दारण । ताको पुत्र रत्नु अवतरघौ, रयनायस गण वीस भरयौ ।। ५३०।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy