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________________ कविवर बुचराज एवं उनके समकालीन कवि (फोंदु) जिसमें आवकों की यच्छी वस्ती थी। वे प्रति दिन भ्रष्ट द्रव्य से जिन पूजा करते थे। उनके पिता का नाम राम था। कवि पर सरस्वती की पूर्ण कृपा थी । इसलिए उनका वाक्य ही काव्य बन जाता था। पुराणों को सुनने में कवि को विशेष रुचि थी। एक बार कवि को नगकै नई के निवासी साह धेनु के पास जाने का काम पड़ा । जब येषु धावा ने गारवदास के वचनामृत का पान किया तो वह प्रसन्न हो गये और हाथ जोड़कर कहने लगे कि यदि यशोधर कथा को काव्य बद्ध कर सको तो उसका जीवन सफल माना जावेगा । येघु श्रीमन्त ने यह भी कहा कि जिस प्रकार कवि ने इस कथा को अपने गुरु से सुनी है उससे भी अधिक सुन्दर रूप से उसको वह चाहता है । कथा कवित्त बंघ चौपाई छन्द में होनी चाहिए। इस प्रकार प्रस्तुत काव्य रचने की प्रेरणा कवि को फफोंदु निवासी धेनु से प्राप्त हुई थी। कवि ने यशोधर चरित्र की रचना संवत् १५८९ भादवा शुक्ला १२ वृहस्पतिवार को समाप्त की थी। रचना समाप्ति के समय कवि सम्भवतः पते श्राश्रयदाता के पास ही थे । प्राश्रयदाता ܘܟܐ उत्तर प्रदेश में गंगा और यमुना के बीच में कैलई नाम की नगरी थीं। उसको देवतागण भी सुख और शान्ति की नगरी मानते थे । यहाँ ३६ जातियों की १. २. ३. राम सुतनु कवि गारववासु सरसुति भई प्रसन्नी जासु । चत फफोतपुर सुभ होर श्रावग बहुत गुणी जहि और ||३३२|| वसुविह पूज जिनेस्वर एहानु ले प्रभारु दिन सुनहि पुरा ||५३३|| धु सर्न कवि गारवदासु, निमुनि वचनु चित भयो हुलासु । द्वे कर जोरि भरी गुन गेहू, सफल जनम मेरो करि ले ||१८|| सलिल कथा जसहर की भासि, जिम गुरु पास सुनी तुम रासि । जो बहु आदिकविसुर भए, अरघ कठोर वरित रचनए ||१६|| संवत् पन्द्रह से इकअसी, भावी सुकिल श्रवस द्वावसि ।।५३३|| सुर गुरुवारु करण तिथि भली पूरी क्या भई निरमसी । जसहर कथा कही सब भासि, सिरवलौ भाव परम गुर पासि ।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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