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________________ चतुरुमल के गीत १७७ आस्मा ध्यानु करीज, सहि पंचम गति लीजै । श्रावग सुणहु विचारू, भनई चतुरु श्रीमारु ॥ क्रोध गीत [४] कोष क्रोध न की जीवरा, फछु उपसमु हो । हर हि पर: का बहि, प्रो. गिति सवारी । तब अप्पो हो अप्पो तापई पस्तव । परतवं अप्पा गुननि जारई, क्रोध होयरा जव धरै । सुमति करनरण बोसरई, ईही सील संजमु स अविरया । जब सुरिस मन संचरैई, इम जानि जिवाला गहहि उपसमु। गोधु ख्रिणमत काई करे, क्रोध न कीज जीवरा ॥१॥ मान मान न कीजै जोईवर।। तिसु मानहि हो मानहि जीयरा दुखु सहै । प्राणु सराहै हो भलो, पुरिण फर की हो पा की णित करई । परु कर निद्रा नित प्रानी, इसोइ मन गरवं खरी । हउ रूप चतुरु सुजानु संदर ईसोप भर्न मद मरे । पहमेव करि करि कर्म बंधी, लाख चौरासी महि फिरें । इम जानि जियरा मानु परिहरि, मानु बहु दुखह करी ।।२।। माया माया परिहरि जीवडा, जोक सुगहि हो सुहि पावह सुख घनौ । माया कपट जे चलहि ते पावहि हो पानहि दुख दालिदु धनौ । दुख तनोऊ दालिदु मरिक जीवरा, कर्म फेरै कडो लई। घर घरह भीतरि आनु प्रानी वयन पर बोलए । परपंषु करि करि तबई पर कहु कपटु सबु माया तनो। इम जानि जीवडा तिहि माया, जीऊ सुपाबई सुख घनौ ।।३।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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