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चतुरुमल के गीत
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आस्मा ध्यानु करीज, सहि पंचम गति लीजै । श्रावग सुणहु विचारू, भनई चतुरु श्रीमारु ॥
क्रोध गीत [४]
कोष
क्रोध न की जीवरा, फछु उपसमु हो । हर हि पर: का बहि, प्रो. गिति सवारी । तब अप्पो हो अप्पो तापई पस्तव । परतवं अप्पा गुननि जारई, क्रोध होयरा जव धरै । सुमति करनरण बोसरई, ईही सील संजमु स अविरया । जब सुरिस मन संचरैई, इम जानि जिवाला गहहि उपसमु। गोधु ख्रिणमत काई करे, क्रोध न कीज जीवरा ॥१॥
मान
मान न कीजै जोईवर।। तिसु मानहि हो मानहि जीयरा दुखु सहै । प्राणु सराहै हो भलो, पुरिण फर की हो पा की णित करई । परु कर निद्रा नित प्रानी, इसोइ मन गरवं खरी । हउ रूप चतुरु सुजानु संदर ईसोप भर्न मद मरे । पहमेव करि करि कर्म बंधी, लाख चौरासी महि फिरें । इम जानि जियरा मानु परिहरि, मानु बहु दुखह करी ।।२।।
माया
माया परिहरि जीवडा, जोक सुगहि हो सुहि पावह सुख घनौ । माया कपट जे चलहि ते पावहि हो पानहि दुख दालिदु धनौ । दुख तनोऊ दालिदु मरिक जीवरा, कर्म फेरै कडो लई। घर घरह भीतरि आनु प्रानी वयन पर बोलए । परपंषु करि करि तबई पर कहु कपटु सबु माया तनो। इम जानि जीवडा तिहि माया, जीऊ सुपाबई सुख घनौ ।।३।।