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________________ १. नेमीश्वर को उरगानो अथ उरगानो लिखिलं नेमी कुंवर को मंगलाचरण प्रथम चलन जिन स्वामी जुहार, ज्यों भवसाय पावाहि पान | लह मुकति दुति दुति तिरी पंच परम गुर त्रिभुवन साथ । सुमिरत उपजे बुद्धि अपार, सारद मनाविक तोहि । गुरु गोतमु मो देव पसाउ, जो गुन गाउ जादु राह । जान् गुन दिन में मिले मित्र देवी कुवार | जाके नाम तिरे संसार, चतुर गति गमनु निवारियो । राजमति तजि जीव मिलाई, घडि गिरनंरि लियो तपु जाई नेमि कुवरु जिन मंदि हो || १ || 1 सुनि पुरानु हरिवंस गम्ही पंडित धबलु जु साहस बौर | तिनि मुस रनि जु रचि कियो, कलि केवल जो त्रिभुवन सारु ॥ सुनि भाषिय भव उतरे पा, नेमि कुंवर जिन वंदि हो ||२|| नारायण श्रीकृष्ण कर वन- वरती आदि जुट पसारु, जादी कुल इतनी क्योहारु । जो नाराइनु भोतरे पर जो जानो नेमि कुमा० । जाके नाम तिरै संसारु, नेमि कुवरु जिन बंदि हौ ||३|| . धन कौरि सु जादौ वीरु, रहइ द्वारिका सायर तीय । भोग माइ वतु विधि है, राजु करें हित सो पारवाद । वाह्य राय प्र भंडारा, नैमि कुंवर जिन वंदि हो ||४|| जीति जुरासिंधु संधु बजाई। पुनि द्वारिका पऊने जाइ । चक्र नाराइन कर चढे. करहि वीमा ए मंगलवार । पंच सवय वाद भनिवार, नेमि कुरु जिन वंदि हो ||५|| सभा पूरि हरि राज, वऊषा सयतु न सुझे ठाउ । होह अषारे पेथने, गनी राइ भइ मनोहारी । नाशइन आरते उतारी, नेमि कुंवर जिन मंदि हो || ६ ||
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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