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________________ 'चतुरुमल १६५ रचना स्थान 'नेमीश्वर का उरगानों' का रचना स्थान गोपाचल दुर्ग (ग्वालियर) रहा । उस समय वहां के शासक महाराजा मानसिंह थे जिनके सुशासन की कवि ने प्रशस्ति में प्रशंसा की है। महाराजा मानसिंह तोमर वंश नासक थे। बहरे जैन धर्म का पुरा प्रभाव व्याप्त का उसके मनुयायी सेवा, स्वाध्याय, संयम, तप और दान जैसे कार्यों का प्रति दिन पालन करते थे । पाण्डुलिपि माह युदी उरगानों की एकमात्र पाण्डुलिपि शास्त्र भण्डार वि० जैन मन्दिर तेरह थियान के एक गुटके में संग्रहीत है । पांडुलिपि संवत् १८२ समाप्त हुई थी । संगतीलेख वाला पन्तिम अंक १८२० से १५२६ के मध्य किसी समय लिखी गयी थी। प्रतिनिधि करने वाले ये प्राचार्य देवन्द्रकीर्ति थे जिन्होंने इसे अपने शिष्य के लिए लिखा था । १४ गुरुवार के दिन इसलिए यह पाण्डुलिपि नहीं है सं 000
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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