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________________ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि विजय प्राप्त करके शंखनाद के साथ द्वारिका पहुचे। एक दिन पूरी राज्य सभा जुड़ी हुई थी। विविष खेल हो रहे थे । राजा एवं रानी दोनों ही प्रसन्न थे। उसी संपय नेमिकुमार आए । सभी ने उनका आरती उतार कर स्वागत किया । नारायण श्रीकृष्ण ने सभी सभासदों को नेमिनाथ का परिचय दिया तथा कहा कि वर्तमान समय में नेमिनाथ से बढ़कर कोई साहसी एवं धैर्यवान है। बलभद्र ने नेमिनाय के बारे में और भी जानना चाहा । श्रीकृष्ण जी ने नेमिनाथ का चित्र लिया तथा राजा उग्रसेन के पास गये और उनसे नेमिनाथ के लिये राजुल को मांग लिया। उन्होंने कहा कि हम सब यादव नेमिनाथ की बारत में बायेंगे। उग्रसेन ने अत्यधिक प्रसन्न होकर राजुल से नेमिनाय के विवाह की स्वीकृति दे दी। लेकिन साथ में उन्होंने चुपचाप ही कुछ पशुओं को एकत्रित करने के लिए कह दिया । कुछ समय के पश्चात् नेमिनाथ बारात लेकर वहां पहधे । उन्होंने वहाँ चारों ओर देखा प्रौर पशुषों को एकत्रित करने का कारण जानना चाहा । लेकिन जब उन्हें मालूम पड़ा कि ये सब बरातियों के लिए प्राये हैं तो उन्हें एकदम वैराग्य हो गया और विवाह कंकण तोड़कर तथा रथ को छोड़कर गिरनार पर्वत पर बा चढ़े। नेमिनाथ के वैराग्य से राजुल के माता पिता एवं परिजनों सबको दुःश हुमा और वे विलाप करने लगे। जब राजुल को उनके वैराग्य लेने का पता चला तो वह मुछित हो गई । वह कभी उठती कभी बैठती और कभी चिल्लाती। वह अपने पिता के पास जाकर रुदन करने लगी। पिता ने सारा दोष श्रीकृष्ण जी पर साल दिया । लेकिन उसने राजुल से यह भी कहा कि उसका विवाह किसी दूसरे राप्रकुमार से कर दिया आवेगा जो नेमि के समान ही रूपदान एवं घंयंत्रान होगा। तथा विधाओं का प्रागार होगा। राजुल को पिता के शब्द सुनकर प्रत्यधिक दुःख हुमा । पौर नेमिनाथ के अतिरिक्त दूसरे किसी से भी बात नहीं करने के लिए कहा । राजुल भी नेमि के पीछे-पीछे शिखर पर जा चढ़ी और ने मि से ही उसे छोड़कर चले पाने का कारण जानना चाहा । नेमिनाथ ने स्वयं के लिए संयम लेने की बात कही तथा राज्य, हाथी, घोड़ा एवं अन्य सभी परिग्रह छोडमे की बात कही। लेकिन उन्होंने राजुल से वापिस घर जाकर विवाह करने के लिए कहा क्योंकि तपस्वी जीवन अत्यधिक कठिन जीवन है। इसमें साथ-साथ बहना परित्याज्य है। राजुस ने नेमि को छोड़कर घर लौटने से इन्कार कर दिया और कहा कि चाहे उसके प्राण ही क्यों न चले जायें वह तो उन्हीं के चरणों में रहेगी। घर जाकर क्या करेगी। इसके बाद राजुन ने दो-दो महिनों को लेकर बारह महिनों में होने वाले ऋतु जन्य संकट का वर्णन किया तथा कहा कि ऐसे दिन में उनको छोड़कर कैसे जा सकती हैं । यह तो उनहीं की सेवा करेगी । राजुल ने कहा सावन भादों में
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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