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________________ चतुरुमल १५६ शोध के लिए रोचक विषय है। इन सब की बहमूल्य सामग्री देश के जन मन्थागारों में उपलब्ध होती हैं । लेकिन साहित्य के उक्त विविध रूपों के अतिरिक्त प्रभी तक और भी बीसों रूप हैं जिनकी खोज एवं शोध मावश्यक है। प्रभी हमें साहित्य का एक रूम "उरगानो" प्राप्त हुपा है। जिसके रचयिता हैं कविवर चतुरुमल अथवा बतुरु ! कवि परिचय ___चतुरुमल १६ वीं शताब्दी के अन्तिम चरण के कवि थे। यद्यपि इनकी अभी तक प्रधिक रचनाएं उपलब्ध नहीं हो सकी है लेकिन फिर भी उपलब्ध कृतियों के आधार पर कवि धीमाल जाति के थावक थे । दि. जैन धर्मानुयायी थे तथा गोपाचल ग्यालियर के रहने वाले थे 12 कवि के पिता का नाम जसवंत था । अपने पिता के वे इकलौते पुत्र थे । कवि ने अपने परिचय में लिखा है कि जन्म लेते ही उसका नाम बतुस रख दिया गया। कवि की शिक्षा दीक्षा कहां तक हुई इसको तो विशेष सूचना प्राप्त नहीं है किन्तु नेमिपुराण सबसे पधिक प्रिय था और उसी के आधार पर उसने 'नेमीश्बर का उरगानो' काव्य की रचना की थी। क्योंकि उसने अनेक पुराणों को सुना था तथा स्वाध्याय की थी लेकिन हरिवंश पुराण में उसका सबसे अधिक आकर्षण हुमा । उस समय वहां पदल पण्डित रहते थे। वे साहसी एवं धैर्यवान थे। उन्हीं के पास कवि ने पुराणों का अध्ययन किया था। और उसी अध्ययन के नाधार पर प्रस्तुत कृति की रचना की थी। रचनाएँ कवि ने हिन्दी में कब से लिखना प्रारम्भ किया इसको तो अभी खोज होना शेष है लेकिन संवत् १५६९. में उसने गोपाचन गढ में भाकर के गीतों की रचना १. राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों को ग्रन्थ सूची--भाग चतुर्थ पृ० ४ । २. मधि बेसु सुख सयल निधान, गहु गोपाचलु उत्तिम थानु ।।४४।। श्रावग सिरमलु बरु जसवंत निहध जिय धर्म परत । पर चल नधि वंदती, पुत्र एक ताके घर भयो । जनमत नाम चतुरु तिनी लियो, जनधर्म विदु जीवह धरी ।।४३।। सुनि पुरानु हरिमंस गम्हीर, पंडित धवलु जु साहस धरि । तिनिस तरया मिनु रचि कियो, कलि केवलि को त्रिभुवन सार ॥२॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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