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________________ चतुरुमल १६ वीं शताब्दि के मन्तिम चरण में होने वाले जितने हिन्दी जैन कवि अल्प ज्ञात हैं उनमें पतुरुमल अथवा चतुर कवि भी है। राजस्थान के जैन मयागारों में अभी तक ऐसे सैकड़ों कवि पोथियों में बन्द है जिन्होंने हिन्दी भाषा में कितनी हो सुन्दर रचनाएं लिखी थी और अपने युग में प्रसिद्धि प्राप्त की थी । लेकिन समय के अन्तराल ने ऐसे कवियों को पर्दे के पीछे धकेल दिया और फिर थे सामने माही नहीं सके । कुछ बड़े कवि तो फिर भी प्रकाश में मा गये और उनका प्रध्ययन होने लगा लेकिन कितने ही कवि जिन्होंने लधु रचनाएं लिखी, पद एवं सुभाषित लिखे तथा पुराणों के आधार पर वरित व रास लिखे, नावनी बारहमासा लिखे, ऐसे पचासों कवि भभी तक भी गुटकों में बाद हैं और उन्होंने हिन्दी की जो अमूल्य सेवाएं की थी बे अभी तक हमारे से ओझल हैं । जैन कवियों के हिन्दी में केवल चरित एवं रास संशक प्रबन्ध काव्य ही नहीं लिखे किन्तु साहित्य के विविध रूपों में अपनी कृतियों को प्रस्तुत करके हिन्दी के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया । उन्होंने स्तोत्र, पाठ, संग्रह, कथा, रासो, रास, पूजा, मंगल, जयमाल, प्रश्नोत्तरी, मंत्र, अष्टक, सार, समुच्चय, वर्णन, सुभाषित, चोपई, शुभमालिका, निशाणी, जकड़ी, ध्याहलो, बधाषा, विनती, पत्री, भारती, बोल, चरचा, विचार, बात, गीत, लीला, चरित्र, छंद, छप्पय, भावना, विनोद, काव्य, नाटक, प्रशस्ति, धमाल, चौहालिया, चौमासिथा, बारामासा, बटोई, वेलि, हिटोलणा, चूनडी, सज्झाय, बाराखडी, भक्ति, वन्दना, पच्चीसी, बत्तीसी, पचासा, बावनी, सतसई, सामायिक, सहस्रनाम, नामावली, गुरुवावली, स्तबन, संबोधन, एवं मोड़वो संज्ञक रचनायें निबद्ध करके अपने विशाल ज्ञान का परिचय दिया । S10 वासुदेवशरण अग्रवाल के शब्दों में इन विविध साहित्य रूपों में से किसका कम प्रारम्भ हुमा भोर किस प्रकार विकास पोर विस्तार हुमा यह
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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