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________________ बावनी १४६ ललाटहि मनायो. तुम्मद वात पिसार । सो न मिट सुनि मूढ झंप दीजइ रयणायर । रचि करि कोडि उपाय, सकल संसारहि बाबइ। पौरुष जाणि विनाणि किय कछु पधिक न पावह । छोहल्ल कहै जहं जहं फिरइ कर्म बंध तह तह लहै । पिष्षौ यह कूध समुद्र महं घट प्रमाणि जल संग्रहै ।।३।। नीच सरिस नहीं प्रीति, बैर कीजहन प्रबस करि । मध्य भाई माझिय, संग छांडिय दूरंतरि । हित प्रथवा प्रनहित, चित पितकै बुरि मति । निसचय सुख की हानि, दुष्ष उपज पहूं गति । छोहल कहै पिष्षहु प्रगट, कर अंगारहि कोड धरं । दामें निबद्ध तातो लिप, सीरी कारी कर करें ।।३।। पत्त सुतौ पति तुच्छ काज नहिं प्राव कत्थह । फल वाकस रसहीण, छांह निदीम कियथ्थह । साषा कंटक कोटि, लेई पंषी न बसेरउ । श्रीहल गुणियन महइ, कोन गुण वरणो तेरउ । र रे बबुलनि लच्छरण निलज, पापी परहु न उपगर । जो देहि फूल फल प्रवर तरू, तिनह की ररुषा करं ॥४०॥ फिर चउरासी लष्ष, जोणि लद्धी मानुष जम । सो निसफल न गंवाइ, मूढ कीजद सुकृत क्रम । कनक कचोली मज्झि. मूढ भरि छारिन नाखिसि । कल्पवृक्ष उष्वेलि, मूढ एण्डम रषिसि । वायस्सि उडाबण कारणी, चितामरिण क्यों रासिय । यीहल कहै पीयूष सौं, नाक पांव पषालिये ।।४।। बसुधा विश्वामित्र, सरिस चे तपिय गरिहा । संपति ते भोगव, रहै बनर्षटहि बैठा । लोभ मोह परिहर, किया इन्द्री पंचे बस । तणि वदन निरपंत, तेइ पुनि परस् काम रस । पाहार करहि षटरस सहित, पंचामृत जुगति सिम । छीहरूल कहै तिहि पुरुष को, इन्द्री निग्रह होइ किम ॥४२॥
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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