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१. पद सहेली गीत
मगर वर्णन
देखा नगर सुहायणा, अधिक सुचंगा थान | नाउ चगेरी परगट, जन सुर लोक सुजान ।।१।। ट्ठाइ मिदिर सत खिने, सो नइ लिहिया लेहु । . छोहल तन की उपमा कहत न आवइ छेहउ ।।२।। ट्ठाइ हाइ सरवर पेखीया, सू सर भरे निवाण । हाइ कूवा बावरी, सोहइ फटक समान ॥३॥ पबन छतीसी तिहां बसाइ, अप्ति चतुराई लोक ।। गुम विद्या रस पागला, जानइ परिमल लोग ।।४।। तिहा ठइ नारी पेखीयइ, रंभा केड निहारि । रूप कंत ते आगली, प्रबर नहीं संसार ॥५। पहरि सभाया प्राभरण, पर दस्यण के चीर ।। बहुत सहेली साथि मिलि, पाई सरवर तीर ।।६।। चीचा चंदन थाल भरि, परिमल पहप प्रनंत । खंड बीडी पान की, खेलहु सखी बसंत ।।७।। केइ गावइ मधुर धुनि, केइ देवहि रास । केइ हीडोलइ होडती, इह चिघि करइ विलास ।।८।। तिन मोह पंच सहेलियो, नाचइ मावहि ना हसइ । ना मुखि बोलइ बोल""""" """""||६|| नयनह काजल ना दीउ, ना गलि पहिन्दी हार । मुन्न तंबोल न खाईया, ना कछु कीया सिंगार ||१०॥ रूले केस ना म्हाईया, महले कप्पड तास । बिलखी बाइसी उनमनी, लबि लेहि उसास ॥११॥ सूके महर प्रणाली यां, अति कुमलाणा मुख । तउ मई बूझी जाइ कह, तुम्ह काहउ फेतउ दुख ॥१२।।