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________________ ११५ १८ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि गीत मनुषि लिया कवल विगस्सेवा । ए जिणु देखीया पापः परणसेवा || राहि पाप पणासे जनम मेरे देव दरसनु जोइया । सयल नंछित इछ पुत्रिय भावहा पति गोइया ॥ यह महिय अगि नमाइ सुंदरि रोरु कसमलु मिल्लिया । श्री वीर जिगर भवणि श्राई सखी तनु मनु खिल्लिमा ॥१॥ माजु दिनु धनो र ि सुहाइवा I थाई तउरगि जिगह मंदरि देव गुरगुवहु गाइया । संसारि सफला नमु किया धम्मसि मनु लाइया || सिद्धथराइ नरिव नंदनु दिवs प्रति उज्जल तनी । श्री महावीर जिखंदु स्वामी दिवस भाजु जाण्या घनी || २ || ए गुथि मालले माल लिवाईया ! एमइ भाव सिवा जिए चड़ाईया || डाइ जिसिरि माल कुसमह, महमनिहि भावन भाईया | कप्पूरि चंदनि गरि केसरि जिगह पूज रचाईया || त्रिभुजा नाथु अनायु स्वामी मुकति पंथ उजालण े । श्री वीर जिणवर भवा लाई माल गुंथी मालणं ||३|| सिव अनंत सुखादेण दाता रावे 1 रचिउ हमारावे ॥ एनु म्ह बलणि मनो हम रचित मनु तुम्छ पद पंकज जरा मरण निवारहो । वाल व किछु करछु करुणा भवह सागरु ताच्हो || X यूचराज कवि षहूर्गात निवारण श्री महावीय जिणंदु पणविद अनंत X सिद्धरवणी रातवो । सिव सुख दातवो || ४ || X
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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