SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११६ १६ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि राग आसावरी दोहा :- संजम प्रोहरिण ना चडे भए अनंत संसारि । स्वामी पारे उत्तरे हमि थके उरवारे ।। छंदु ॥ हम थाके उरबारि स्वामी पारेगए । समकतु संवलो नाहते नरदीन भये ॥ ते भये दीन जहीन समकति मणि जिणवर ते खड़े । गति चारि चउरासिम लख महि जनमु करि ते रूले ॥ बहु वारि दरसनु भया स्वामी षम्भु पालि न सकिया । तुम्हि पारि पहुते वीर जिरणवर प्रसे पतणि बकिया ॥१॥ इक्क लग्न माहि देखे कष्ट वहो । प्रासत वेदन घोर सहारे कवण कहो ॥ कहु को सहारह घोर वेदन ता६ तावा पावहे । करि लोड् थंभसि अग्गिने आणि अंगि लगावहे || यरगत भेयरण डंड मुद्गर तनु पहारे सल्लिया । दुख कष्ट देखे गुणहु स्वामी नर माहि इकलिया ||२|| सेव्या कुगुरु कुदेउ पड़ियाक धम्म ते । पुदगल प्रवत्तिन काल कीती बहुत श्रुते । श्रुति बहल कीती सुरहु जीयड़े आठ कम्मिहि तु नया । वलु करि डिगाया पंच श्रुतिहि एवं मिध्यातिहि पडघा || नित चघो मान गयंदि मय मति तत्त, चित्ति न वेद्दिया । पडिया कुद्धम्मिहि सुनहु जीवडे कुगुरु हेते सेविया || ३ || हम चातिगह पियास दरिसन नीर विणा । श्रतनिसाम बुझाउ सरवनि सरस घणा ॥ घण सरस सरवनि करुणा भवह पारु लघाव हो । दुख जरा जन्म मरण केरे तिन्हह वेगि छुडाव हो ॥ कर जोडि 'बच्चा' भइ सेवगु मेटि जिण अंतरि तम । तुम्ह नीर दरसण वाभु स्वामी त्रिसात्र बालिग हम ||४|| X X X
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy