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________________ ११४ कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि १४ रागु सहर वाले बलिवेह मावे मनु माया धुलि रात्ताचे । वाले वलि वेह्र मात्रै रहइ पाठ मदि मात्तावे॥ माद हहै नाता परम् न जाता जो सरवति हि भास्या। धन पुत्त कलत्ता मित्ता हित्ता देखत हिये विगस्वा ॥ सा विसरीके व नरकि जा भोगी वेदन दुसहु प्रसाता । करुणा कस्तारि कहे जन 'चा''................." वाले वलिवेहु मावे मनु माया धुलि रातावे ॥१॥ वाले बलिवेह मावे सवल मिथ्यातिहि मोद्यावे। वाले वलिवेहु मावे पंच ठगिहि मिलि दोह्यावे । ठगि पंचिहि दोहा ते नहु जोहा साया समकतु सारो। चौगति हीयतह कष्ट सहतह मलि न लद्धा पारो॥ पागम सिद्ध'तह वचन मुगतह ते नहु चितु प3 वोह्मा। करुणा करुतारु कहै जन 'वधा'। वाले वलिवेहु मावे सवल मिथ्यातहि मोह्या वे ॥२॥ वाले वलिबेहु मारे जी लोहा पारसु पर सवे । वाले वलि हु. मावे तातु कंचरण दरसचे ॥ हर कंचरण दरस संगति सरस मुड सरउ पिछाणं । सह अंदर भीतरु एको हावै ता परमारथु सड जाणं ।। मानन्द रूपी नित रहद निरंतरि कबलु हिय महि हरस । करुणा करुतारुक कहइ जन 'बूचा' । वाले वलिखेहु माने जी लोहा पारस परसैदे ॥३॥ वाले वलिवेहु मावे सेबहु तिहुवरण राया वे । वाले वलिवेहु भावे जिनि सांचा मग दिखाया वे ।। जिनि भग्गु दिखाया लिय मनु लाया तिसु मन्यामहि रहिये । पविहटु अविनासी जोति प्रकाशी थानु मुकति जिय नहिय ।। भौउ भाग्गउ संसारह प्रति घोरह पुनरपि जनमनु पाया। करुणा करतारु कह्इ जनु 'दूचा' । वाले वलिबेहु भावे सेक्हु तिढुवण रायावे ।।४।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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