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कविवर बूचराज एवं उनके समकालीन कवि
राग धनाक्षरी
सुणिय पधानु मेरे जीयवे, की सुभ ध्यानि न भावहि । साचा धम्मु न पालिया फिरि फिरिता गति धायहि || फिरिफिरि गति ध्याया सुख न पाया ढाए उतपंदा | इन्ह विषया संगिपिया कुछ गिहि काला प्रापुरि चंदा || सुह प्रमुह कमह किसुह समइ तू जाणहि भाषु कमावही । सुणिय पधानु मेरे जीयबे की सुभ ध्यानि न प्रावहि || १ || टेर
सुभिया पंकज तलका सुरु जिउ नहु बंधण छोड
मोहनी सत्तार कोडा कोड़िये I मालिया सश्या न वंरण छोडिये ।। उडिया लोई करें कलाप रे ।
र रसणिहि चाख्या मूलू न राख्या कीए गते हि बसेरे ॥
ठमि गिया लोभे नढि मोहे जडिया घाल्या श्राप खुभिया पंकज मोहनी सत्तिरि
बोडिवे । ||२||
कोडा कोडिवे
संपत्ति सजन सरीरि सुत पेखि न भुल्ला सभायवे । खेवट फेरी ना चजिउ मिले सजोगिहि आइये || मिलिया संजोग इन्हही लोगिहि पुम्वहि पुन कमाये । यहु रत्नु चितामणि कबडी कारण खोउ न मूढ प्रयाणे ॥ परंगु सनेह यहु सुखु एह मधुविदु रस सायवे । संपति सजन सरीरि सुतः पेखि न मुल्ला सभाइये ||३||
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श्रहंन देउ निरगंथ गुरु जिनि यहु निजु करि जाग्रीया तिन्ह जमरणु सहला गयान दुरगति दुखु टाल्या सीयलु जंपति 'बूबा कहइ सरवनि जीति परहंतु देउ निरगंथ गुरु केवल
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केवल भाषित धम्मजी | कीया सफलु तिन्ह जम्मुजी || ग्रला जिनही समकतु जाता । पाल्या मिथ्या जालि न फाल्या ।। सुर्मात मानहु भरमु जी । भाषित धम्मजी ||४||
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