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________________ बूचराज के गीत राग बासु ए सखी मेरा मन घपलू यस दिसे ध्याये वेहा । ए बलु पहियडा लोभ रसे खिणु सुभ घ्याने ना पावै वेहा ।। मागे न खिए सुभ ध्यानि लोभी पंच संगिहि रात वो । मोह्यिा इनि ठगि मोहि पुरति विषु अमी करि जातको । मिगोद नर यह सहे बहु दुख किमो भ्रमणु घणेर वो । दस दिसिहि घ्यावं हरि न रहई सखी मनु मेरो ॥१॥ एहउ बरजे रही हरि न सुणे अबरु चरै दिन रपणे वेहा । ए यहु मातडा पाठमई ततु न चाहीयमा नयणे वेहा । चाहीया तत्त न न्यान नयणि हि सुमति चिति न धारिया । मिथ्याति पडिया नाद कालि ह जनमु एवइ हारिया । मुल्लिया तितु भष मझि सागरि धून ते जाण्या सही । सो प्रचर चर इन सुगइ कहिया वरजिहा तिसुकी रही ।।२।। एति तु निगुण सिवा चेतनो क्या धुलि रहिउ लुभाए बेहा । ए निरंजनो पटल प्रजनि राख्या पुरतं छाए वेहा । छाइया धूरति पटल अंजनि राउ त्रिभुवन केरउ । दुख रोग सोग विजोग पंजरि किया आइ बसेरउ । मप्पणउ वस्तु तजि हुवउ परवसि लछि धरि कायर जिव । घुल रह्या निसि दिनु सगुण चेतनु निगुण तिसुनारी सिवा ॥३॥ ए रपणत्तउ वर तो भजो सुण सुरण जीम हमारे बेहा । ए सरवनि धम्मो पालिनि जो प्रोगुण मिटहि तुम्हारे वेवा । तुम मेहि बवगुण जीय संभाल धम्मो जो सरवनि कह्मा । मनि वचनि काया जिन्हिहि पाल्या सासुता सुख तिन्ही लह्मा। दुस्ख जरा जम्मण मरण केरे अव भागा भवो । इवराज कवि मंजु गाय म्हारे दरतु यहु रयणतउ ।।४।।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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