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चेतन पुद्गल धमाल
जिय मुकति सरूपी तू निकल मलु राया । इस के संगते भमिया करमि ममाया घडि कवल जिवा गुरिए तजि कद्दम संसारो । मजि जिरण गुण ही तेरा यह विवहारो ॥ विवहार यह तुझ जागि जीयडे करहु इंदिय संवरो निरजरहु वंधण कर्म केरे जान तनि दुक्कावरो ॥
जे वचन श्री जिण वौरि भासे तरह नित घारह हीया । इस मणइ 'दूध' सदा निम्मलु मुकति सरूपी जीया ॥ १३८॥
॥ इति चेतन पुद्गल धमाल समाप्त ॥
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