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________________ नेमीस्वर का बारहमासा राग वउहंसु सामन भास ए रुति सावणे सावरिण नेमि जिण गवसो न कोज वे | सुणि सारेगा भाष दुसह तनु खिणु खिरणु छोन वे । छीजति वाढ़ी विरह व्यापित घुरइ घए मइ मंतिया । सालर सरि रड रडहि निसि भरि रयरिण विज्जु खिवंतिया । सुर गोपि यह सुह वसुल मंडित मोर कुहकहि बरिण परिण। बिनति राजुल सुणहु नेमि जिण गवळ नां करु सावणे ।।१।। भाद्रपद मास ए भरि भाइवरं भादवि मारग जल हरे छाए वे । कोर परभूए परमुइं पंथी हरि न जु लाये वे । नहु जु लाइ को पर भूमि पंधी किसू सनेहा जंप वे । सरपंच तनि मनमथ दीद्रिय कर लजि निसि कंपयो । बंग चडिय तर पिरि देख पावस मनि प्रनन्दु उपाइया । घरि भाउ नेमि जिरण चडिउ भाद्दउ मग्ग जलहर छाइया ।।२।। मासोज मास ससि सोहाए सोहै ससिहरु प्रासूचा मासे वे । जल निरमल निरमन जल सरि काल वेगासे । विगसंति सरि सरि कवल कोमल भवर रुणु झुणकार है। मयमंतु मनमथु तनि विमापइ किवसु चित्त सहार हे । देखन्ति सेज अकेलि कामिणि मखह नहु होले इसे । घरि प्राइ नेमि जिणंद स्वामी प्रासूर्य सोह ससि ।।३।। कात्तिक भात इनु कातेगे कातिय मागमु को साथ पाले थे । परि मंडपे मंसपि राजुल मग्गो मेहोल वे।
SR No.090252
Book TitleKavivar Boochraj Evam Unke Samklin Kavi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherMahavir Granth Academy Jaipur
Publication Year
Total Pages315
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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