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________________ स्वरान्ता: नपुंसकलिङ्गाः स्वसा तिरुश्चतरुक्ष ननान्दा दुहिता तथा। याता मातेति सप्तैते स्वस्त्रादिष्वध्यगीषत ॥१॥ शसादौ मातृशब्दवत् । इति प्रकारान्ताः । ऋकार लकार लकार एकारान्ता अप्रसिद्धाः । एकारान्तः स्त्रीलिङ्ो सुरैशब्दः । स च रैशब्दवत् । सुरा: सुसयौ सुरायः । सम्बोधनेऽपि तद्वत् । सुरायम् सुरायौ सुरायः । सुराया सुराभ्याम् सुराभिः । सुराये सुराभ्याम् सुराभ्यः । सुराय: सुराभ्याम् सुराभ्यः । सुरायः सुरायो: सुरायाम् । सुरायि सुरायोः सुरासु । इत्यैकारान्ता: । ओकारान्तः स्त्रीलिङ्गो गोशब्द: । स च पूर्ववत् । औकारान्त: स्त्रीलिङ्गो नौशब्दः । स च ग्लौशब्दवत् । इत्यौकारान्ताः । इति स्वरान्ता: स्त्रीलिङ्गाः अथ स्वरान्ता नपुंसकलिङ्गा उच्यन्ते अकारान्तो नपुंसकलिङ्गः कुलशब्दः । सौ--- अकारादसम्बुद्धौ मुश्च ॥२३६ ॥ अकारान्तान्नपुंसकलिङ्गात्परयो: स्यमोर्लोपो भवति मुरागमश्चासम्बुद्धौ । कुलं । श्लोकार्थ-स्वस, तिसृ, चतसृ, ननान्द, दुहित, यातू, मातृ ये सात शब्द यहाँ आदि शब्द से लिये गये हैं। इनमें भी शस् विभक्ति में मातृ शब्दवत् रूप बनते हैं। इस प्रकार से ऋकारांत शब्द हुए। ऋकारांत, लकारांत और लूकारांत और एकारांत शब्द अप्रसिद्ध हैं। अब ऐकारांत स्त्रीलिंग 'सुरै' सुरै+सि है । रै.' इस सूत्र से व्यंजनवाली विभक्ति के आने पर ऐ को आ हो जाता है तब रा:' बना । सुराः सुरायो सुरायः । सुराये सुराभ्याम् सुराभ्यः हे सुराः । हे सुरायौ ! हे सुरायः ! | सुरायः सुराभ्याम् सुराभ्यः सुरायम् । सुरायों सुरायः । सुरायः सुरायोः सुरायाम् सुराया सुराभ्याम् सुराभिः । सुरायि सुरायोः सुरासु इस प्रकार से ऐकारांत शब्द हुए। अब ओकारांत यो शब्द है जो कि पूर्ववत् चलता है। औकारांत स्त्रीलिंग 'नौ' शब्द है। यह ग्लौ शब्दवत् चलता है। इस प्रकार से औकारांत शब्द हुये। स्वरांत स्वीलिंग प्रकरण पूर्ण हुआ। अब स्वरांत नपुंसकलिंग प्रकरण कहा जाता है। अकारांत नपुंसकलिंग कुल शब्द है। कुल+सिं, कुल + अम् अकारांत नपुंसकलिंग से परे संबुद्धि को छोड़कर सि, अम् विभक्ति का लोप हो जाता है और मु का आगम हो जाता है ॥२३६ ॥ ___ एक को हटाकर उसी स्थान पर दूसरे प्रत्यय के आने पर उसे आदेश कहते हैं एवं पृथक् रूप से किसी प्रत्यय के आने को आगम कहते हैं। आदेश शत्रुवत् माना गया है एवं आगम मित्रवत् माना गया है। कुल+भु 'उ' का अनुबंध लोप होकर कुलम् बना । कुल+औ
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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