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________________ करा-बरमाला ह्रस्वोऽम्बार्थानाम् ।।२१९॥ अम्बार्थानां द्विस्वराणां श्रद्धासंज्ञकानां सम्बुद्धौ हस्वो भवति । हे अम्ब । हे अक्क । हे अल्ल । हे अत्त । एवमादयोऽम्बार्थाः । अन्यत्र रम्भाशब्दवत् । न बहुस्वराणाम् ।।२२० ॥ बहुस्वराणामम्बार्थानां श्रद्धासंज्ञकानां हस्वो न भवति सम्बुद्धौ सौ परे । हे अम्बाडे । हे आबाले । हे अम्बिके । इत्याकारान्ता: । इकारान्तः स्त्रीलिङ्गो रुचिशब्दः । रुचिः । रुची । रुचयः । हे रुचे। हे रुची। हे रुचय: । रुचिम् । रुची। स्त्रीलिङ्गत्वात्सस्य नत्वाभावः । रुवीः । तृतीयैकवचनेऽपि तस्मानत्वाभावः । रुच्या 1 रुचिभ्याम् । रुचिभिः । वत्सु। हस्वश्च इवति ।।२२१॥ स्त्र्याख्यावियुवौ स्थानिनौ च ह्रस्वश्च डवति परे नदीसंज्ञौ वा भवतः । यत्र नदीसंज्ञा तत्र । माता अर्थ के वाचक दो स्वर वाले श्रद्धासंज्ञक शब्दों को संबुद्धि में ह्रस्व हो जाता है ॥२१९॥ हे अम्बा +सि-हे अम्ब ! हे अक्क ! हे अल्ल ! हे अत: ! सम्बोधन में माता अर्थ के वाचक शब्दों में ही यह नियम है। बाकी सभी विभक्तियों में इनके रूप रम्भावत् चलेंगे। जैसेअम्बा अम्बे अम्बाः । अम्बायैः अम्बाभ्याम् अम्बाभ्यः हे अम्ब ! हे अम्बे ! हे अम्बाः !] अम्बायाः अम्बाभ्याम् अम्बाभ्यः अम्बाम् अम्बे अम्बाः अम्बायाः अम्बयोः अम्बानाम् अम्बया अम्बाभ्याम् अम्बाभिः । अम्बायाम् अम्बयोः अम्बासु बहुत स्वर वाले माता के वाचक, श्रद्धा संज्ञक शब्दों को संबोधन में हस्व.नहीं होता है ।।२२०॥ जैसे—अम्बाडा + सि = हे अम्बाडे ! हे अम्बाले ! हे अम्बिके ! इस प्रकार से आकारांत शब्द हुये। अब इकारान्त स्त्रीलिंग रुचि शब्द है। रुधि+सि= रुचि., रुचि+ औ 'औरिम्' इस २११वें सूत्र से 'इ' होकर रुची 1 रुचि+जस् अग्नि संज्ञा करके 'इरेदुरोज्जसि' सूत्र से ए होकर रुचय बना। रुचि + शस् स्त्रीलिंग में स् को न् नहीं होने से विसर्ग होकर रुची; बना । अर्थात् 'शसोऽकार: सश्च नोऽस्त्रियाम्' इस १६६वें सूत्र से शस् के अकार को पूर्व स्वर रूप होकर स् को विसर्ग हुआ और समान सवर्ण को दीर्घ होकर रुची: बना। रुचि+टा, टा के द् का अनुबंध लोप होकर रुचिं + आ 'अस्त्रियां टा ना' इस १६७वे सूत्र से स्त्रीलिंग में टा को ना का निषेध होने से संधि हो गई तो रुच्या बना । रुचि + भ्याम् = रुचिभ्याम्।। रुचि+ डे आदि चारों वचन हैं। डे आदि विभक्ति के आने पर स्त्रीलिंग में वाची इय् उव् स्थानीय और ह्रस्व इकारान्त उकारान्त स्त्रीलिंग वाचक शब्द वह विकल्प से नदीसंज्ञक भी हो जाते हैं ॥२२१ ।। अर्थात् आगे आने वाले २२६वें सूत्र से दीर्घ ई ऊ को स्त्रीलिंग में नदी संज्ञा होती है।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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