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स्वरान्ता: पुल्लिङ्गः
५७ स्वस्रादीनां च ऋत आर्भवति घुटि परे। स्वसारौ । स्वसार: । हे स्वसः । इत्यादि । अन्यत्र पितृशब्दवत् । के स्वस्रादयः ?
स्वसा नप्ता च नेष्टा च स्वष्टा क्षत्ता तथैव च।
होता पोता प्रशास्ता घेत्यष्टौ स्वस्रादयः स्मृताः॥१॥ नृशब्दस्य तु भेदः । नृशब्दस्यामि विशेष: । ना। नरौ । नरः । हे न: । है नरौ । हे नरः । नरम् । नरौ । नृन्। त्रा। नृभ्याम् । नृभिः । त्रे । नृभ्याम् । नृभ्यः । नुः । नृभ्याम् । नृभ्यः । नुः । नोः । न नामि दीर्घमिति वर्तते।
नृया०४॥ नृशब्दो वा दीर्घ प्राप्नोति सनावामि परे । नृणाम्, नृणाम् । नरि। नोः । नृषु ॥ इति ऋदन्ताः । ऋकारलृकारलूकारकारान्ता अप्रसिद्धाः । ऐकारान्तः । पुल्लिङ्गो रैशब्दः । आत्वं व्यञ्जनादौ इति वर्तते ।
रैः॥२०५॥
स्वस् आर् + औ= स्वसारौ स्वसारः।
हे स्वस:, स्वस + शस् में स् को न नहीं होगा क्योंकि 'शसोऽकार: सश्चनोऽस्त्रियाम्' सूत्र में स्त्रीलिंग में स् को न का निषेध किया है और यह स्वसावहन का वाचक स्त्रीलिंग है।
अत: स् को विसर्ग होकर स्वसृ: बनेगा। बाकी शब्द पितृवत् चलेंगे। सूत्र में स्वस्त्रादि शब्द है तो आदि से कौन कौन लेना ?
श्लोकार्थ-स्वस, नप्त, नेष्ट्र, त्वष्ट, क्षत्तु, होत्त, पोत, प्रशास्तृ ये आठ शब्द आदि शब्द से लिए जाते हैं।
इनके रूप भी स्वस के समान ही चलते हैं। अंतर यही है कि ये शब्द पुल्लिग हैं अत: स को न होकर पितृन् शब्द के समान रूप बनते हैं। जैसे नप्तन, नेष्टन इत्यादि।
नृ शब्द में आम विभक्ति के आने पर ही अंतर है बाकी सब रूप पितृ के समान ही हैं। न+आम् “न नामि दीर्घ" यह सूत्र अनुवृत्ति से आ रहा है।
आम् के आने पर नृ शब्द के क्र को दीर्घ विकल्प से होता है ॥२०४॥ . नृ+नु आम् = नृणाम, दीर्घ होकर, नृणाम् बना । ना नरौ नर: । त्रे
नृभ्याम् हे नः । हे नरौ हे नरः | नुः नृभ्याम् नृभ्यः नरम्
नरौ नरौ
नृन् नृन् ।
नृणाम्, नृणाम् नृभ्याम् नभिः
षु इस प्रकार से प्रकारांत शब्द हुये दीर्घ ऋकारान्त, लकारांत और लकारांत और एकारांत शब्द अप्रसिद्ध हैं।
अब ऐकारांत पुल्लिंग "," शब्द है।
।
नरि
रै+सि
“आत्वं व्यंजनादौ" यह सूत्र अनुवृत्ति में चला आ रहा है। व्यंजन वाली विभक्ति के आने पर रै शब्द आकारांत हो जाता है ॥२०५ ॥