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कातन्त्ररूपमाला
अल्पादेवा ॥१५७ ॥ अल्पादेर्मणात्परो जस् सर्व इर्भवति वा । अल्पे, अल्पा: । अन्यत्र पुरुषशब्दवत् । कोऽल्पादिर्गणः । अल्प प्रथम चरम त्रितय द्वितय द्वय त्रय (ऐते तयअयप्रत्ययान्ताः) कतिपय नेम अर्द्ध पूर्व पर अवर दक्षिण उत्तर अपर अधर एव अन्तर (वृत्) इति अल्पादिः । पूर्वशब्दस्य तु भेदः । पूर्व: । पूर्वी । पूर्वे । पूर्वाः । हे पूर्व । हे पूर्वी । हे पूर्वे, हे पूर्वाः । पूर्वम् । पूर्वी । पूर्वान् । पूर्वेण । पूर्वाभ्याम् । पूर्वे: । पूर्वस्मै । पूर्वाभ्याम् । पूर्वेभ्य: । डसियो:
विभाष्येते पूर्वादः ॥१५८॥ पूदिर्गणात्परयोर्डसिड्यो: 'स्मास्मिनौ विभाष्येते। पूर्वस्मात, पूर्वान, पूर्वाभ्याम्1 पूर्वेभ्यः । पूर्वस्य । पूर्वयोः। पूर्वेषाम् । डौ तथैव विकल्प: । पूर्वस्मिन्, पूर्वे । पूर्वयोः । पूर्वेषु । कः पूर्वादिः । प्रागेवोक्त: । इत्यकारान्ताः । आकारान्तः पुल्लिङ्गः क्षीरपाशब्दः । ततः स्याद्युत्पत्ति: । सौ । क्षीरपा: । क्षीरपौ क्षीरपा: । सम्बुद्धावविशेषः । क्षीरपाम् । क्षीरपौ। शसादौ तु विशेषः ।
पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर, अधर, स्व, अंतर, त्यद, तद्, अदस्, इदम्, एतद, किम् एक द्वि युष्मद् अस्मद् भवत् । ये सब सर्वनाम कहलाते हैं। अल्प शब्द में कुछ भेद हैं- अल्प: अल्पौ--अल्प + जस है।
अल्प आदि गण से परे जस को 'इ' विकल्प से होता है ॥१५७ ॥ अल्पे बना और एक बार 'जसि' सूत्र से अकार को दीर्घ होकर और संधि की एवं स् को विसर्ग होकर अल्पा: बना। बाकी सभी रूप पुरुष के समान हैं।
अल्पादि गण में कौन-कौन-से आते हैं ?
अल्प, प्रथम, चरम, त्रितय, द्वितय, द्वय, वय ये चार रूप तय और अय प्रत्यय से बनते हैं । कतिपय, नेम, अर्द्ध, पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर, अधर, स्व और अंतर ये अल्पादि गण हैं।
पूर्व शब्द में भी भेद हैं। इसमें भी जस् में दो रूप बनते हैं। ये पूर्वादि शब्द सर्वनाम में हैं। जिनमें अंतर है उनके रूप--
पूर्व + ङसि, पूर्व + डि पूर्व आदि गण से परे उसि और डि को विकल्प से स्मात् और स्मिन् आदेश होता है ॥१५८ ॥ पूर्वस्मात्, पूर्वात, पूर्वस्मिन् पूर्वे!
पूर्वः पूर्वी पूर्वे, पूर्वाः । पूर्वस्मै पूर्वाभ्याम् पूर्वेभ्यः हे पूर्व ! हे पूर्वी ! हे पूर्वे, पूर्वाः : पूर्वस्मात्, पूर्वात् पूर्वाभ्याम् पूर्वेभ्यः
__ पूर्वी पूर्वान् । पूर्वस्य पूर्वयोः पूर्वेषाम् पूर्वेण पूर्वाभ्याम् पूर्वैः । पूर्वस्मिन, पूर्वे पूर्वयोः
पूर्वादिगण क्या है ? पहले ही बता दिया है अर्थात् पूर्व, पर, अवर, दक्षिण, उत्तर, अपर, अधर, स्व और अंतर।
इस प्रकार से अकारांत शब्दों का प्रकरण हुआ। अब आकारांत पुल्लिग शब्दों में क्षीरपा शब्द आता है। और क्षीरपा से परे सि आदि विभक्तियाँ आती हैं।
क्षीरपा+सि = क्षीरपा., क्षीरपा+ औ- क्षीरपौ, क्षीरपा+जस् = क्षीरपाः । संबोधन में भी ये ही रूप बनेंगे। शस् आदि विभक्ति के आने पर कुछ विशेषता है । क्षीरपा+शस्।
१. समाप्तिद्योतको वृच्छब्द इति ।। २. अस स्मात्' 'डि. स्मिन्' इति सूत्रद्वयमनुवर्तते ।
पूर्वम्