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कृदन्तः
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चक्षिङ ख्याङ्॥५९२ ॥ चक्षिङ् इत्येतस्य ख्याङादेशो भवति असार्वधातुके। गां संचष्टे गोसंख्यः ।
गष्टक् ।।५९३ ।। कर्मण्युपदे गायतेष्टक् भवति । मधुरं गायतीति मधुरगी। सामगी।
सरानीप्तो: पिलः५९४॥ सुरासीध्वोरुपपदयोः पिबतेष्टाभवति । सुरापी। सीधुपी ।
होऽच् वयोऽनुद्यमनयोः ॥५१५ ॥ कर्मण्युपपदे हरतेरज् भवति वयसि अनुद्यमने गम्यमाने । ऊर्ध्वं नयनमुद्यमनं ततोऽन्यदनुद्यमनं । कवचहर: क्षत्रियकुमारः।
आङि ताच्छील्ये ।।५९६ ।। कर्मण्याङि चोपपदे ताच्छील्यार्थे हरतेरज् भवति । पुष्पाणि आहर्तुं शीलमस्य पुष्पाहरो विद्याधरः ।
__ अहश्च ॥५९७ ॥ कर्मण्युपपदे अर्हतेरज् भवति । पूजामर्हतीति पूजाहः ।
धनः प्रहरणे चादण्डसूत्रयोः ॥५९८॥
चक्षिङ् धातु को असार्वधातुक में ख्याङ् आदेश होता है ।।५९२ ॥ गां संचष्टे गोसंख्यः।
कर्म उपपद में गा धातु से 'टक्' प्रत्यय होता है ।।५९३ ॥ मधुरं गायतीति मधुरगी।
सुरा, सीधु उपपद में होने पर 'पा' धातु से टक् प्रत्यय होता है ॥५९४ ॥ सुरापी, सीधुपी।
कर्म उपपद में रहने पर वयस् और अनुद्यमन अर्थ में ह धातु से 'अच्' प्रत्यय होता है ॥५९५ ॥
किसी वस्तु को उठाते हैं तो ऊपर करना होता है उद्यमन कहलाता है और इससे विपरीत अनुद्यमन कहलाता है। कवचं हरतीति = कवचहरः ।
कर्म और आङ् उपपद में होने पर तत् स्वभाव अर्थ में ह धातु से अच् होता है ॥५९६ ॥ पुष्पों के ग्रहण करने का है स्वभाव जिसका उसे कहते हैं पुष्पाहर: विद्याधरः ।
__ कर्म उपपद में रहने पर अहूं धातु से अच् होता है ॥५९७ ।। पूजाम् अर्हति इति पूजार्हः ।
दण्ड सूत्र वर्जित प्रहरणवाचक उपपद के होने पर 'धृ' धातु से अच् प्रत्यय होता है ॥५९८ ॥