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________________ तिङन्तः दरिद्रातेरसार्वधातुके ॥ ३९९ ॥ दरिद्रातेरन्तस्य लोपो भवत्यसार्वधातुके स्वरे परे ।। दिदरिद्रिषति । अत्र इटि च आकारलोपः । छ्वोः शूठौ पञ्चमे च ॥ ३९२ ॥ छकारवकारयोर्यथासंख्यं शु ऊठ् इत्येतौ भवतः क्वौ धुट्यगुणे प्रत्यये पञ्चमे परे । दिद्यूषति । ऋधिज्ञपोरीरीतौ ॥ ३९३ ॥ ऋधिज्ञपोरीरीतौ भवतोऽभ्यासलोपश्च सनि परे । ज्ञीप्सति । ईर्त्सति । २८९ भृजादीनां षः ।। ३९४ ॥ भुजादीनां धातूनामन्तः षो भवति धुट्यन्ते च । इति जकारस्य षकारः । निभृक्षति । दम्भेस्सनि ।। ३९५ ।। दंभेरनुषङ्गो लोप्यो भवत्यनिटि सनि परे । तृतीयादेर्घढघभान्तस्येत्यादिना षत्वं । दम्भेरिच्च ॥ ३९६ ॥ दम्भः स्वरस्य इत् ईच्च भवति अभ्यासलोपश्च सनि परे सति । ति । शिश्रीपति मुचूषति । उरोष्ठ्योपधस्य च ॥ ३९७ ।। ओष्ठ्योपधस्य ऋदन्तस्य उर् भवति अगुणे प्रत्यये परे । नामिनो वॉरकुर्च्छर्घ्यञ्जने इत्युपधाया दीर्घो भवति । बुभूषति । इस नियम से ष नहीं हुआ तो सिसासति । दरिद्रा दुर्गति अर्थ में हैं 1 असार्वधातुक स्वर के आने पर दरिद्रा के अन्त का लोप हो जाता है ॥ ३९९ ॥ दिदरिद्रिषति । यहाँ आकार का लोप और इट् हुआ है। क्वि, धुट् अगुण, प्रत्यय पञ्चम के आने पर छकार वकार को क्रम से शु हो जाता है ॥ ३९२ ॥ दिधूषति । सन् के आने पर ऋध शप् को 'ई' 'ईत्' हो जाता है और अभ्यास का लोप हो जाता है ॥ ३९३ ॥ ज्ञीप्सति । ईर्त्सति । घुट् अन्त में आने पर भृजादि धातु के अंत को 'ष' होता है ॥ ३९४ ॥ इस प्रकार से कार को षकार हो गया है बिभृक्षति | और ऊठ अनिट् सन् के आने पर दम्भ के अनुषंग का लोप हो जाता है ॥ ३९५ ॥ १४४वें सूत्र से धकार हो गया है I 가 " तृतीयादेवढ धभान्तस्य सन् के आने पर दंभ के स्वर को इत् ईत् हो जाता है और अभ्यास का लोप हो जाता है ॥ ३९६ ॥ द् को ध् अनुषंग का लोप अ को इ और ई तथा भ् को प् होकर धिप्सति, धीप्सति । शिश्रीषति युयूषति । अगुण प्रत्यय के आने पर ओष्ठ्य की उपधा के ऋदन्त को उर् हो जाता है ॥ ३९७ ॥ “नामिनोर्वो" इत्यादि सूत्र १८३ से उपधा को दीर्घ होकर बुभूषति बना ।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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