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________________ २४८ कातन्त्ररूपमाला भुवः सिज्लुकि ॥२३०॥ भुवो गुणो न भवति सिज्लुकि । अभूत् अभूतां । भुवो वोन्त: परोक्षायतन्योः ।।२३१ ।। भूधातोरन्ते वकारागमो भवति परोक्षाद्यतन्यो: स्वरे परे । अभूवन् । अभूः अभूतं अभूत । अभूवं अभूव अभूम । इण् गतौ । इणो गाः ।।२३२॥ इणो गा भवत्यद्यतन्यां परत: । ___अनिडेकस्वरादातः ।।२३३ ।। एकस्वरादाकारात्परमसार्वधातुकमनिड् भवति । अगात् अगातां । आलोपोऽसार्वधातुके ।।२३४ ॥ धातोराकारस्य लोपो भवत्यसार्वधातुके स्वरादावगुणे परे। अगुः । अगा: अगातं अगात । अगाम् अगाव अगाम । इन स्मरणे। इकोऽपि ॥२३५ ॥ इकोऽपि गा भवत्यद्यतन्यां परतः। इडिकावध्युपसर्ग न व्यभिचरतः। अध्यगात् अध्यगातां अध्यगुः । अस्थात् अस्थातां अस्थः । अधात् । अदात् । इत्यादि । इङ अध्ययने। सिच् का लुक् होने पर भू को गुण नहीं होता है ॥२३० ॥ अत: भू द ह्यस्तनी अद्यतनी आदि में धातु की आदि में अट् का आगम होकर 'अभूत्' अभूतां बन गया। अभू अन् है। परोक्षा और अद्यतनी में स्वर विभक्ति के आने पर भू धातु के अंत में 'वकार' का आगम हो जाता है ॥२३१ ॥ अभूवन् । अभू: अभूतं अभूत । अभूवम् अभूव अभूम । इण-गति अर्थ में है। ___ इण् धातु को अद्यतनी में 'गा' आदेश हो जाता है ॥२३२ ॥ आकारांत एक स्वर वाली धातु असार्वधातुक में इट् रहित होती है ॥२३३ ॥ अगात् अगातां । अन् को उस होकर असार्वधातुक में स्वरादि अगुणो विभक्ति के आने पर धात् के आकार का लोप हो जाता है ॥२३४ ॥ अगुः । इक् धातु स्मरण अर्थ में है। अद्यतनी में इक् को भी 'गा' आदेश हो जाता है ॥२३५ ॥ इः और इक् थात, 'अधि' उपसर्ग को व्यभिचरित नहीं करते हैं अर्थात् इनमें 'अधि:' उपसर्ग अवश्य लगता है। अध्यगात् अध्यगातां अध्यगुः । स्था धातु से—अस्थात् । धा दा धातु से अधात् । अदात् इत्यादि । इङ् धातु अध्ययन अर्थ में है।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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