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________________ २३८ कातन्त्ररूपमाला नोविकरणस्य ।।१९३॥ नुविकरणस्योकारस्य संयोगपूर्वस्य उवादेशो भवति स्वरादावगुणे सार्वधातुके परे। अश्सुवाते अश्नुवते । चिञ् चयने । चिनोति चिनुत: चिन्वन्ति । चिनुते चिवाते चिन्वते । सुनुयात् सुनुयातां सुनुयः । अश्नुवीत अश्नुवीयातां अश्नुवीरन् । अश्नुवीथा: अश्नुवीयाथां अश्नुवीध्वं । अश्नुवीय अश्नुवीवहि अश्नुवीमहि । चिनुयात् । चिन्वीत । सुनोतु सुनुतात् सुनुतां सुन्वन्तु । __ नोश्च विकरणादसंयोगात् ।।१९४॥ रोगपूर्वानुलिका , परो भई। नुतात् सुनुतं सुनुत । सुनवानि सुनुवात्र सुनुवाम। अश्नुतां अश्नुवातां अश्नुवतां । अश्नुष्व अश्नुवाथां अश्नुध्वं । अश्नवै अश्मवावहै अश्नवामह । चिनोतु चिनुतात् चिनुतां चिन्वन्तु । चिनुतां चिन्वातां । चिनुष्व चिन्वाथां चिनुध्वं । चिनवे चिनवावहै चिनवामहै। असुनोत् असुनुता असुन्वन् । आश्नुत आश्नुवातां आश्नुवत । अचिनोत् । अचिनुत । इत्यादि । इति स्वादिः । अथ तुदादिगणः तुद् व्यथने ॥ तुदादेरनि ॥१९५॥ तुदादेर्गुणो न भवति अनि परे । तुदति तुदत: तुदन्ति । मृङ् प्राणत्यागे। यहाँ यण् प्रत्यय के आने पर दीर्घ होने से 'सूयते, सूयेते' आदि बनेगा । अशूङ् धातु व्याप्ति अर्थ में है। अश्नुते बना। नु विकरण के उकार को 'उन्' आदेश हो जाता है ॥१९३ ।। संयोग पूर्व वाली धातु से नु विकरण के उकार को स्वरादि अगुण सार्वधातुक के आने पर 'उव्' आदेश होता है । अश्नुवाते अश्नुवते बना। चिञ् धातु-चयन अर्थ में है—फूल चुनना । आदि । चिनोति चिनुत: चिन्वन्ति । चिनुते चिन्वाते चिन्वते । सप्तमी में सुनुयात् । अश्नुवीत । चिनुयात् । चिन्वीत । इसमें १९० सूत्र से 'उ' को 'व' हुआ है। पंचमी में—सुनोतु । सुनु हि है। असंयोग पूर्व से परे नु विकरण होने से 'हि' का लोप हो जाता है ॥१९४ ॥ सुनु । पंचमी के उत्तमपुरुष में गुण होने से सुनवानि सुनवाब सुनवाम। अश्नुतां अश्नुवातां अश्नुवता। उत्तमपुरुष में--अश्नवै, अश्नवावहै, अश्लवामहै। चिनोतु । चिनुतां । उत्तमपुरुष में—चिनवै, चिनवावहै चिनवामहै। ह्यस्तनी में-असुनोत् । आश्नुत । अचिनोत् । अचिनुत । . इस प्रकार से स्वादि गण समाप्त हुआ। अथ तुदादि गण प्रारंभ होता है। तुद् धातु पीड़ा अर्थ में है। तुद् ति' है 'अन् विकरण: कर्तरि' से अन् विकरण होता है। पुनः । ___ अन् विकरण के आने पर तुदादि को गुण नहीं होता है ॥१९५ ॥ तुदति तुदत: तुदन्ति । मृङ् धातु प्राण त्याग-भरने अर्थ में है।
SR No.090251
Book TitleKatantra Roopmala
Original Sutra AuthorSharvavarma Acharya
AuthorGyanmati Mataji
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages420
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size10 MB
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